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त्वां व॑र्धन्ति क्षि॒तयः॑ पृथि॒व्यां त्वां राय॑ उ॒भया॑सो॒ जना॑नाम्। त्वं त्रा॒ता त॑रणे॒ चेत्यो॑ भूः पि॒ता मा॒ता सद॒मिन्मानु॑षाणाम् ॥५॥

English Transliteration

tvāṁ vardhanti kṣitayaḥ pṛthivyāṁ tvāṁ rāya ubhayāso janānām | tvaṁ trātā taraṇe cetyo bhūḥ pitā mātā sadam in mānuṣāṇām ||

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Pad Path

त्वाम्। व॒र्ध॒न्ति॒। क्षि॒तयः॑। पृ॒थि॒व्याम्। त्वाम्। रायः॑। उ॒भया॑सः। जना॑नाम्। त्वम्। त्रा॒ता। त॒र॒णे॒। चेत्यः॑। भूः॒। पि॒ता। मा॒ता। सद॑म्। इत्। मानु॑षाणाम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:1» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:35» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या प्रयोग करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (जनानाम्) मनुष्यों के (उभयासः) दोनों प्रकार के अर्थात् विद्वान् और अविद्वान् जन और (क्षितयः) निवासवाले मनुष्य (पृथिव्याम्) भूमि में (रायः) धनों की और (त्वाम्) आपकी (वर्धन्ति) वृद्धि करते हैं और (त्वाम्) उन आपको उत्तम प्रकार प्रयुक्त करते हैं (त्वम्) वह आप (तरणे) दुःखों से उद्धार के निमित्त (त्राता) रक्षा करनेवाले (चेत्यः) चयन समूहों में हुए (पिता) पिता के सदृश पालनकर्त्ता और (माता) माता के सदृश आदर करनेवाले (मानुषाणाम्) मनुष्यों के पालक (भूः) होओ और (सदम्) स्थिर होते हैं, जिसमें उस गृह को व्याप्त हुए उन आपको (इत्) ही सब लोग विशेष करके जानें ॥५॥
Connotation: - जो पृथिवी आदिकों में वर्त्तमान बिजुलीरूप अग्नि का उत्तम प्रकार प्रयोग करते हैं, वे सब के सुख देनेवाले होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कः प्रयोक्तव्य इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! जनानामुभयासो विद्वांसोऽविद्वांसश्च क्षितयः पृथिव्यां रायस्त्वाञ्च वर्धन्ति त्वां सम्प्रयोजयन्ति त्वं तरणे त्राता चेत्यः पितेव मातेव मानुषाणां पालको भूः सदं व्याप्तस्तमित् सर्वे विजानन्तु ॥५॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) तम् (वर्धन्ति) वर्धयन्ति। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम् (क्षितयः) निवासन्तो मनुष्याः (पृथिव्याम्) भूमौ (त्वाम्) तम् (रायः) धनानि (उभयासः) (जनानाम्) (त्वम्) सः। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः। (त्राता) रक्षकः (तरणे) दुःखादुद्धरणे (चेत्यः) चितिषु भवः (भूः) (पिता) पितेव पालकः (माता) मातेव मान्यप्रदः (सदम्) सीदन्ति यस्मिंस्तत् (इत्) एव (मानुषाणाम्) मनुष्याणाम् ॥५॥
Connotation: - ये पृथिव्यादिषु स्थितं विद्युदग्निं सम्प्रयुञ्जते ते सर्वेषां सुखप्रदा जायन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे पृथ्वीमध्ये असलेल्या विद्युत अग्नीचा उत्तम प्रकारे उपयोग करतात ते सर्वांना सुखदायक ठरतात. ॥ ५ ॥