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तं नो॑ अग्ने अ॒भी नरो॑ र॒यिं स॑हस्व॒ आ भ॑र। स क्षे॑पय॒त्स पो॑षय॒द्भुव॒द्वाज॑स्य सा॒तय॑ उ॒तैधि॑ पृ॒त्सु नो॑ वृ॒धे ॥७॥

English Transliteration

taṁ no agne abhī naro rayiṁ sahasva ā bhara | sa kṣepayat sa poṣayad bhuvad vājasya sātaya utaidhi pṛtsu no vṛdhe ||

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Pad Path

तम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒भि। नरः॑। र॒यिम्। स॒ह॒स्वः॒। आ। भ॒र॒। सः। क्षे॒प॒य॒त्। सः। पो॒ष॒य॒त्। भुव॑त्। वाज॑स्य। सा॒तये॑। उ॒त। ए॒धि॒। पृ॒तऽसु। नः॒। वृ॒धे ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:9» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:1» Mantra:7 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहस्वः) बहुत सहन आदि गुणों से युक्त (अग्ने) विद्वन् ! जो आप (नः) हम लोगों के (नरः) नायक अर्थात् कार्य्यों में अग्रगामियों और (रयिम्) धन को (अभि) सन्मुख (आ, भर) सब प्रकार धारण करें (तम्) उनका हम लोग सत्कार करें (सः) वह आप हम लोगों की (क्षेपयत्) प्रेरणा करें और (पोषयत्) पोषण पालन करें (सः) वह (वाजस्य) अन्न आदि के (सातये) संविभाग के लिये (भुवत्) होवें (उत) और (पृत्सु) सङ्ग्रामों में (नः) हम लोगों की (वृधे) वृद्धि के लिये (एधि) हूजिये ॥७॥
Connotation: - सुकर्म्मों के जानने की इच्छा करनेवालों को चाहिये कि विद्वानों के प्रति यह प्रार्थना करें कि आप लोग हम लोगों को श्रेष्ठ गुणों में प्रेरित करो और ब्रह्मचर्य्य आदि से पुष्ट करो और सत्य और असत्य के विभाग करनेवाले और युद्धविद्या में चतुर जन हम लोगों की निरन्तर रक्षा करें ॥७॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह नवमा सूक्त और पहला वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे सहस्वोऽग्ने विद्वन् ! यस्त्वं नो नरो रयिमभ्या भर तं वयं सत्कुर्याम स भवानस्मान् क्षेपयत् पोषयत् स वाजस्य सातये भुवदुत पृत्सु नो वृध एधि ॥७॥

Word-Meaning: - (तम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) विद्वन् (अभि) आभिमुख्ये (नरः) नायकान्। व्यत्ययेन प्रथमा। (रयिम्) धनम् (सहस्वः) बहुसहनादिगुणयुक्त (आ) (भर) (सः) (क्षेपयत्) प्रेरयेत् (सः) (पोषयत्) पोषयेत् (भुवत्) भवेत् (वाजस्य) अन्नादेः (सातये) संविभागाय (उत) (एधि) भव (पृत्सु) सङ्ग्रामेषु (नः) अस्माकम् (वृधे) वर्धनाय ॥७॥
Connotation: - जिज्ञासुभिर्विदुषः प्रतीयं प्रार्थना कार्य्या भवन्तोऽस्मान् सद्गुणेषु प्रेरयन्तु ब्रह्मचर्य्यादिना पोषयन्तु सत्यासत्ययोर्विभाजका युद्धविद्याकुशला अस्मान् सततं रक्षन्त्विति ॥७॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति नवमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जिज्ञासूंनी विद्वानांना अशी प्रार्थना करावी की आम्हाला श्रेष्ठ गुणात प्रेरित करून ब्रह्मचर्याने पुष्ट करा. सत्यासत्याचा भेद करणाऱ्या युद्धकुशल लोकांनी आमचे निरंतर रक्षण करावे. ॥ ७ ॥