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अ॒भि क्र॑न्द स्त॒नय॒ गर्भ॒मा धा॑ उद॒न्वता॒ परि॑ दीया॒ रथे॑न। दृतिं॒ सु क॑र्ष॒ विषि॑तं॒ न्य॑ञ्चं स॒मा भ॑वन्तू॒द्वतो॑ निपा॒दाः ॥७॥

English Transliteration

abhi kranda stanaya garbham ā dhā udanvatā pari dīyā rathena | dṛtiṁ su karṣa viṣitaṁ nyañcaṁ samā bhavantūdvato nipādāḥ ||

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Pad Path

अ॒भि। क्र॒न्द॒। स्त॒नय॑। गर्भ॑म्। आ। धाः॒। उ॒द॒न्ऽवता॑। परि॑। दी॒य॒। रथे॑न। दृति॑म्। सु। क॒र्ष॒। विऽसि॑तम्। न्य॑ञ्चम्। स॒माः। भ॒व॒न्तु॒। उ॒त्ऽवतः॑। नि॒ऽपा॒दाः ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:83» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:28» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह मेघ क्या करता है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो मेघ (गर्भम्) गर्भ को (आ, धाः) चारों ओर से धारण करता और (उदन्वता) बहुत जल के सहित (रथेन) सुन्दर स्वरूप से (अभि) सम्मुख (क्रन्द) शब्द करता और (स्तनय) गर्जता है (दृतिम्) फाड़नेवाले के सदृश जल से पूर्ण को (सु, कर्ष) विशेष करके खोदता और दुःखों का (परि) सब प्रकार से (दीया) नाश करता और (विषितम्) बंधे (न्यञ्चम्) निश्चित सेवा करते हुए को विशेष करके लिखता अर्थात् चेष्टा में लाता है तथा जिससे हम लोगों के (उद्वतः) ऊर्ध्वस्थान में वर्त्तमान (निपादाः) निश्चित वा नाचे हैं अंश जिनके ऐसे (समाः) वर्ष (भवन्तु) होवें, उसको जानिये ॥७॥
Connotation: - जो निश्चयपूर्वक जल से संसार को पुष्ट करता है और दुःख का नाश करता तथा फलों को उत्पन्न करता है, वह मेघ विश्वंभर है, ऐसा जानना चाहिये ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स मेघः किं करोतीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो मेघो गर्भमाऽऽधा उदन्वता रथेनाऽभि क्रन्द स्तनय दृतिं सु कर्ष दुःखानि परि दीया विषितं न्यञ्चं सु कर्ष येनोद्वतो निपादाः समा भवन्तु तं विजानीत ॥७॥

Word-Meaning: - (अभि) आभिमुख्ये (क्रन्द) क्रन्दति। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः। (स्तनय) गर्जति (गर्भम्) (आ) (धाः) समन्ताद्दधाति (उदन्वता) बहूदकसहितेन (परि) सर्वतः (दीया) उपक्षयति। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं, द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (रथेन) रमणीयेन स्वरूपेण (दृतिम्) यो दृणाति तं दृतिरिव जलेन पूर्णम् (सु, कर्ष) विलिखति (विषितम्) (न्यञ्चम्) यो निश्चितमञ्चति तम् (समाः) वर्षाणि (भवन्तु) (उद्वतः) ऊर्ध्वदेशस्थाः (निपादाः) निश्चिता निम्ना वा पादा अंशा येषान्ते ॥७॥
Connotation: - यो हि जलेन विश्वं पुष्यति दुःखं नाशयति फलानि जनयति स मेघो विश्वम्भरोऽस्तीति वेद्यम् ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो जलाने जगाला पुष्ट करतो. दुःखाचा नाश करतो तसेच फळे उत्पन्न करतो तो मेघ विश्वंभर असतो हे जाणावे. ॥ ७ ॥