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यस्य॑ व्र॒ते पृ॑थि॒वी नन्न॑मीति॒ यस्य॑ व्र॒ते श॒फव॒ज्जर्भु॑रीति। यस्य॑ व्र॒त ओष॑धीर्वि॒श्वरू॑पाः॒ स नः॑ पर्जन्य॒ महि॒ शर्म॑ यच्छ ॥५॥

English Transliteration

yasya vrate pṛthivī nannamīti yasya vrate śaphavaj jarbhurīti | yasya vrata oṣadhīr viśvarūpāḥ sa naḥ parjanya mahi śarma yaccha ||

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Pad Path

यस्य॑। व्र॒ते। पृ॒थि॒वी। नन्न॑मीति। यस्य॑। व्र॒ते। श॒फऽव॑त्। जर्भु॑रीति। यस्य॑। व्र॒ते। ओष॑धीः। वि॒श्वऽरू॑पाः। सः। नः॒। प॒र्ज॒न्य॒। महि॑। शर्म॑। य॒च्छ॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:83» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:27» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह मेघ कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पर्जन्य) मेघ के सदृश वर्तमान विद्वन् ! (यस्य) जिस मेघ के (व्रते) कर्म्म में (पृथिवी) भूमि (नन्नमीति) अत्यन्त नम्र होती और (यस्य) जिस मेघ के (व्रते) कर्म्म में (शफवत्) खुर के तुल्य (जर्भुरीति) निरन्तर धारण करती है और (यस्य) जिस मेघ के (व्रते) कर्म में (विश्वरूपाः) अनेक प्रकार की (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं, उस मेघ की विद्या से युक्त (सः) वह आप (नः) हम लोगों के लिये (महि) बड़े (शर्म) गृह को (यच्छ) दीजिये ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो वृष्टियाँ न होवें तो किसी का भी जीवन न होवे ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स मेघः कीदृश इत्याह ॥

Anvay:

हे पर्जन्य तद्वद्वर्त्तमान विद्वन् ! यस्य मेघस्य व्रते पृथिवी नन्नमीति यस्य व्रते शफवज्जर्भुरीति यस्य व्रते विश्वरूपा ओषधीर्जायन्ते तद्विद्यया युक्तः स त्वं नो महि शर्म्म यच्छ ॥५॥

Word-Meaning: - (यस्य) (व्रते) कर्म्मणि (पृथिवी) (नन्नमीति) भृशं नमति (यस्य) (व्रते) (शफवत्) शफेन तुल्यम् (जर्भुरीति) भृशं धरति (यस्य) (व्रते) (ओषधीः) सोमाद्याः (विश्वरूपाः) (सः) (नः) अस्मभ्यम् (पर्जन्य) पर्जन्यवद्वर्त्तमान (महि) महत् (शर्म्म) गृहम् (यच्छ) ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यदि वर्षा न भवेयुस्तर्हि कस्यापि जीवनं न भवेत् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर वृष्टी नसेल तर कुणाचेही जीवन शक्य नाही. ॥ ५ ॥