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त्वाम॑ग्ने समिधा॒नं य॑विष्ठ्य दे॒वा दू॒तं च॑क्रिरे हव्य॒वाह॑नम्। उ॒रु॒ज्रय॑सं घृ॒तयो॑नि॒माहु॑तं त्वे॒षं चक्षु॑र्दधिरे चोद॒यन्म॑ति ॥६॥

English Transliteration

tvām agne samidhānaṁ yaviṣṭhya devā dūtaṁ cakrire havyavāhanam | urujrayasaṁ ghṛtayonim āhutaṁ tveṣaṁ cakṣur dadhire codayanmati ||

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Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। स॒म्ऽइ॒धा॒नम्। य॒वि॒ष्ठ्य॒। दे॒वाः। दू॒तम्। च॒क्रि॒रे॒। ह॒व्य॒ऽवाह॑नम्। उ॒रु॒ऽज्रय॑सम्। घृ॒तऽयो॑निम्। आऽहु॑तम्। त्वे॒षम्। चक्षुः॑। द॒धि॒रे॒। चो॒द॒यत्ऽम॑ति ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:8» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:26» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ्य) अत्यन्त युवाजनों में श्रेष्ठ (अग्ने) विद्वन् जैसे (देवाः) विद्वान् जन (हव्यवाहनम्) ग्रहण करने योग्य वाहनों को शीघ्र प्राप्त करनेवाले (उरुज्रयसम्) बहुत वेगयुक्त (घृतयोनिम्) जल वा प्रदीप्त अथवा कारण है गृह जिसका (आहुतम्) जो सब ओर से शब्दयुक्त (त्वेषम्) प्रदीप्त तथा (चोदयन्मति) बुद्धि को प्रेरणा करने और (चक्षुः) पदार्थों को दिखानेवाले (समिधानम्) प्रकाशमान अग्नि को (दधिरे) धारण करते और (दूतम्) सब ओर से व्यवहारसाधक (चक्रिरे) करते हैं, वैसे (त्वाम्) आप को हम लोग धारण करें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य विद्वानों के सङ्ग के बिना अग्नियों के गुण और अग्नि आदि संयोग के गुणों को जानने योग्य नहीं होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे यविष्ठ्याग्ने ! यथा देवा हव्यवाहनमुरुज्रयसं घृतयोनिमाहुतं त्वेषं चोदयन्मति चक्षुस्समिधानमग्निं दधिरे दूतं चक्रिरे तथा त्वां दध्याम ॥६॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (अग्ने) विद्वन् (समिधानम्) देदीप्यमानम् (यविष्ठ्य) अतिशयेन युवसु साधो (देवाः) विद्वांसः (दूतम्) सर्वतो व्यवहारसाधकम् (चक्रिरे) कुर्वन्ति (हव्यवाहनम्) यो हव्यान्यादातुमर्हाणि यानानि सद्यो वहति तम् (उरुज्रयसम्) बहुवेगवन्तम् (घृतयोनिम्) घृतमुदकं प्रदीप्तं कारणं वा योनिर्गृहं यस्य तम् (आहुतम्) स्पर्द्धितं समन्ताच्छब्दितम् (त्वेषम्) प्रदीप्तम् (चक्षुः) दर्शकम् (दधिरे) (चोदयन्मति) प्रज्ञाप्रेरकम् ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि मनुष्या विद्वत्सङ्गेन विनाऽग्निगुणानग्न्यादिसंयोगगुणाँश्च ज्ञातुमर्हन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे विद्वानांच्या संगतीशिवाय अग्नीचे गुण व अग्नी इत्यादींच्या संयोगाचे गुण जाणू शकत नाहीत. ॥ ६ ॥