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आ यद्वां॑ सू॒र्या रथं॒ तिष्ठ॑द्रघु॒ष्यदं॒ सदा॑। परि॑ वामरु॒षा वयो॑ घृ॒णा व॑रन्त आ॒तपः॑ ॥५॥

English Transliteration

ā yad vāṁ sūryā rathaṁ tiṣṭhad raghuṣyadaṁ sadā | pari vām aruṣā vayo ghṛṇā varanta ātapaḥ ||

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Pad Path

आ। यत्। वा॒म्। सू॒र्या। रथ॑म्। तिष्ठ॑त्। र॒घु॒ऽस्यद॑म्। सदा॑। परि॑। वा॒म्। अ॒रु॒षाः। वयः॑। घृ॒णा। व॒र॒न्ते॒। आ॒ऽतपः॑ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:73» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर स्त्रियाँ कैसी हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (घृणा) प्रकाशित (अरुषाः) लाल चमकते हुए गुणोंवाली (सूर्या) सूर्य्यसम्बन्धिनी प्रातर्वेला के सदृश स्त्री (वाम्) तुम्हारे (रघुष्यदम्) थोड़े चलनेवाले (रथम्) विमान आदि वाहन पर (आ) सब प्रकार से (तिष्ठत्) स्थित होती है, जिसको (वाम्) आप दोनों के (वयः) पक्षी (परि, वरन्ते) सब ओर से स्वीकार करते हैं, वह (आतपः) चारों और से उष्ण करनेवाले घर्म्म के सदृश (सदा) सब काल में उपकार करनेवाली होती है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे प्रातःकाल सब प्रकार से प्रिय और सुखकारक है, वैसे परस्पर प्रीतियुक्त स्त्री पुरुष प्रसन्न रहते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स्त्रियः कीदृशो भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यद्या घृणारुषा सूर्योषा इव स्त्री वां रघुष्यदं रथमातिष्ठत् वां वयः परि वरन्ते सा आतप इव सदोपकारिणी भवति ॥५॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (यत्) या (वाम्) युवयोः (सूर्या) सूर्य्यसम्बन्धिन्युषा इव (रथम्) विमानादियानम् (तिष्ठत्) तिष्ठति (रघुष्यदम्) या लघु स्यन्दति सा (सदा) निरन्तरम् (परि) (वाम्) युवयोः (अरुषाः) रक्तभास्वरगुणाः (वयः) पक्षिणः (घृणा) दीप्तिः (वरन्ते) स्वीकुर्वन्ति (आतपः) समन्तात् प्रतापकः ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा प्रातर्वेला सर्वथा प्रिया सुखप्रदा वर्त्तते तथा परस्परं प्रीतौ स्त्रीपुरुषौ प्रसन्नौ वर्त्तेते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी प्रातःकाळची वेळ सदैव प्रिय व सुखदायक असते. तसे स्त्री-पुरुषांनी प्रेमाने व प्रसन्नतेने वागावे. ॥ ५ ॥