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यद॒द्य स्थः प॑रा॒वति॒ यद॑र्वा॒वत्य॑श्विना। यद्वा॑ पु॒रू पु॑रुभुजा॒ यद॒न्तरि॑क्ष॒ आ ग॑तम् ॥१॥

English Transliteration

yad adya sthaḥ parāvati yad arvāvaty aśvinā | yad vā purū purubhujā yad antarikṣa ā gatam ||

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Pad Path

यत्। अ॒द्य। स्थः। प॒रा॒ऽवति॑। यत्। अ॒र्वा॒ऽवति॑। अ॒श्वि॒ना॒। यत्। वा॒। पु॒रु। पु॒रु॒ऽभु॒जा॒। यत्। अ॒न्तरि॑क्षे। आ। ग॒त॒म् ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:73» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब दश ऋचावाले तिहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में फिर स्त्री-पुरुष कैसे वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे स्त्री पुरुषो ! (यत्) जो (अश्विना) वायु और बिजुली (परावति) दूर देश में और (यत्) जो (अर्वावति) निकट देश में (यत्) जो (पुरुभुजा) बहुतों के पालन करनेवाले (वा) वा (यत्) जो (अन्तरिक्षे) आकाश में (पुरू) बहुत (स्थः) स्थित होते हैं, उनके विज्ञान के लिये (अद्य) आज (आ, गतम्) आइये ॥१॥
Connotation: - जो ब्रह्मचर्य्य से विद्या को पढ़कर परस्पर प्रीति से गृहारम्भ करें, वे स्त्री-पुरुष शिल्प विद्या को भी सिद्ध कर सकें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स्त्रीपुरुषौ कथं वर्त्तेयातामित्याह ॥

Anvay:

हे स्त्रीपुरुषा ! यदश्विना परावति यदर्वावति यत् पुरुभुजा वा यदन्तरिक्षे पुरू स्थस्तयोर्विज्ञानायाऽद्यागतम् ॥१॥

Word-Meaning: - (यत्) यौ (अद्य) (स्थः) तिष्ठथः (परावति) दूरदेशे (यत्) यौ (अर्वावति) निकटदेशे (अश्विना) वायुविद्युतौ (यत्) यौ (वा) (पुरू) बहु। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (पुरुभुजा) बहुपालकौ (यत्) यौ (अन्तरिक्षे) आकाशे (आ) (गतम्) आगच्छतम् ॥१॥
Connotation: - यौ ब्रह्मचर्य्येण विद्यामधीत्य परस्परप्रीत्या गृहारम्भं कुर्य्यातां तौ स्त्रीपुरुषौ शिल्पविद्यामपि साद्धुं शक्नुयाताम् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अंतरिक्ष, पृथ्वी व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या शिकून परस्पर प्रीतीने गृहप्रवेश करतात. ते स्त्री-पुरुष शिल्पविद्याही कार्यान्वित करू शकतात. ॥ १ ॥