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स हि ष्मा॒ धन्वाक्षि॑तं॒ दाता॒ न दात्या प॒शुः। हिरि॑श्मश्रुः॒ शुचि॑दन्नृ॒भुरनि॑भृष्टतविषिः ॥७॥

English Transliteration

sa hi ṣmā dhanvākṣitaṁ dātā na dāty ā paśuḥ | hiriśmaśruḥ śucidann ṛbhur anibhṛṣṭataviṣiḥ ||

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Pad Path

सः। हि। स्म॒। धन्व॑। आऽक्षि॑तम्। दाता॑। न। दाति॑। आ। प॒शुः। हिरि॑ऽश्मश्रुः॒। शुचि॑ऽदन्। ऋ॒भुः। अनि॑भृष्टऽतविषिः ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:7» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:25» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (हिरिश्मश्रुः) सुवर्ण के तुल्य दाढ़ी और (शुचिदन्) पवित्र दाँतों से युक्त (अनिभृष्टतविषिः) नहीं जली सेना जिसकी ऐसा (ऋभुः) मेधावी (दाता) देनेवाला (पशुः) पशु (न) जैसे (धन्व) अन्तरिक्ष जो (आक्षितम्) सब ओर से अविनाशी उसको वैसे दुष्टों को (आ, दाति) ग्रहण करता है (सः, हि, स्मा) यही निश्चित सुखपूर्वक बढ़ता है ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे नहीं देनेवाला धान्य को कटवा कर भूसे को अलग करके अन्न का ग्रहण करता है और जैसे पशु खुरों से धान्य आदि को तोड़ता है, वैसे ही राजा साहस करनेवाले दुष्ट मनुष्यों का निरन्तर ताड़न करे ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषयमाह ॥

Anvay:

यो हिरिश्मश्रुः शुचिदन्ननिभृष्टतविषिर्ऋभुर्दाता पशुर्न धन्वाक्षितं दुष्टानां दाति स हि ष्मा सुखमेधते ॥७॥

Word-Meaning: - (सः) (हि) यतः (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (धन्व) अन्तरिक्षम् (आक्षितम्) समन्तादनष्टमिव (दाता) (न) इव (दाति) ददाति (आ) (पशुः) (हिरिश्मश्रुः) हिरण्यमिव श्मश्रूणि यस्य सः (शुचिदन्) शुचयः पवित्रा दन्ता यस्य सः (ऋभुः) मेधावी (अनिभृष्टतविषिः) न निर्भृष्टा प्रदग्धा तविषी सेना यस्य सः ॥७॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा निदाता धान्यं खण्डयित्वा बुसं पृथक्कृत्यान्नं गृह्णाति यथा पशुश्च खुरैर्धान्यादिकं खण्डयति तथैव राजा साहसिकान् दुष्टान् मनुष्यान् भृशं ताडयेत् ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा निंदणी करणारा धान्य व भूसा वेगवेगळे करून धान्य ग्रहण करतो व पशू, खुरांनी धान्य तोडतो तसे राजाने दुष्टांचा बंदोबस्त करावा. ॥ ७ ॥