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ऋ॒तमृ॒तेन॒ सप॑न्तेषि॒रं दक्ष॑माशाते। अ॒द्रुहा॑ दे॒वौ व॑र्धेते ॥४॥

English Transliteration

ṛtam ṛtena sapanteṣiraṁ dakṣam āśāte | adruhā devau vardhete ||

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Pad Path

ऋ॒तम्। ऋ॒तेन॑। सप॑न्ता। इ॒षि॒रम्। दक्ष॑म्। आ॒शा॒ते॒ इति॑। अ॒द्रुहा॑। दे॒वौ। व॒र्धे॒ते॒ इति॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:68» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वानों के सदृश इतरजनों को वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (ऋतेन) सत्य से (ऋतम्) सत्य का (सपन्ता) आक्रोश करते हुए (इषिरम्) प्राप्त होने योग्य (दक्षम्) बल को (आशाते) व्याप्त होते हैं और (अद्रुहा) द्वेष से रहित (देवौ) दो विद्वान् जन (वर्धते) वृद्धि को प्राप्त होते हैं, वैसे आप लोग भी प्रयत्न करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के सदृश क्रिया करके सदा ही वृद्धि करें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वद्वदितरैर्वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथर्त्तेनर्त्तं सपन्तेषिरं दक्षमाशातेऽद्रुहा देवौ वर्धेते तथा यूयमपि प्रयतध्वम् ॥४॥

Word-Meaning: - (ऋतम्) सत्यम् (ऋतेन) सत्येन (सपन्ता) आक्रोशन्तौ (इषिरम्) प्राप्तव्यम् (दक्षम्) बलम् (आशाते) (अद्रुहा) द्रोहरहितौ (देवौ) विद्वांसौ (वर्धेते) ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्यैर्विद्वद्वत् क्रियां कृत्वा सदैव वर्धितव्यम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांप्रमाणे कर्मर् करून सदैव वृद्धिंगत व्हावे. ॥ ४ ॥