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को नु वां॑ मि॒त्रास्तु॑तो॒ वरु॑णो वा त॒नूना॑म्। तत्सु वा॒मेष॑ते म॒तिरत्रि॑भ्य॒ एष॑ते म॒तिः ॥५॥

English Transliteration

ko nu vām mitrāstuto varuṇo vā tanūnām | tat su vām eṣate matir atribhya eṣate matiḥ ||

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Pad Path

कः। नु। वा॒म्। मि॒त्र॒। अस्तु॑तः। वरु॑णः। वा॒। त॒नूना॑म्। तत्। सु। वा॒म्। आ। ई॒ष॒ते॒। म॒तिः। अत्रि॑ऽभ्यः। आ। ई॒ष॒ते॒। म॒तिः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:67» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य विद्वानों से किस प्रकार विद्या ग्रहण करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मित्र) मित्र (वाम्) आप दोनों के (तनूनाम्) शरीरों के (कः) कौन (आ, ईषते) सब प्रकार से प्राप्त होता है, आप (वा) वा (वरुणः) उत्तम स्वभावयुक्त कौन (नु) शीघ्र (अस्तुतः) नहीं प्रशंसित है और जो (वाम्) आप दोनों की (मतिः) बुद्धि हम लोगों को (आ, ईषते) सब प्रकार प्राप्त होती है और (अत्रिभ्यः) व्याप्त विद्या जिनमें उनके लिये (मतिः) मननशील अन्तःकरण की वृत्ति (सु) उत्तम प्रकार प्राप्त होती है (तत्) उसका हम लोग स्वीकार करें ॥५॥
Connotation: - जो मनुष्य अध्यापक और उपदेशकों को प्राप्त होकर उनके उपदेश और विद्या को ग्रहण करके उनसे बुद्धि और उत्तम क्रिया का स्वीकार करते हैं, वे प्रसिद्ध स्तुतिवाले होते हैं ॥५॥ इस सूक्त में मित्रावरुण और विद्वानों के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सड़सठवाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैर्विद्वद्भ्यः कथं विद्यां ग्राह्येत्याह ॥

Anvay:

हे मित्र ! वां तनूनां क एषते त्वं वा वरुणः को न्वस्तुतोऽस्ति या वां मतिरस्मानेषतेऽत्रिभ्यो मतिः स्वेषते तत्तां वयं स्वीकुर्य्याम ॥५॥

Word-Meaning: - (कः) (नु) सद्यः (वाम्) युवयोः (मित्र) सुहृत् (अस्तुतः) अप्रशंसितः (वरुणः) उत्तमस्वभावः (वा) (तनूनाम्) शरीराणाम् (तत्) ताम् (सु) (वाम्) (आ) (ईषते) अभिगच्छति (मतिः) प्रज्ञा (अत्रिभ्यः) व्याप्तविद्येभ्यः (आ) (ईषते) समन्तात्प्राप्नोति (मतिः) मननशीलान्तःकरणवृत्तिः ॥५॥
Connotation: - ये मनुष्या अध्यापकोपदेशकानभिगम्य तदुपदेशान् विद्यां च गृहीत्वैतेभ्यः प्रज्ञामुत्तमकृतिं च स्वीकुर्वन्ति ते प्रसिद्धस्तुतयो जायन्त इति ॥५॥ अत्र मित्रावरुणविद्वत्कृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तषष्टितमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे अध्यापक व उपदेशक यांच्याकडून उपदेश व विद्या शिकतात त्यांच्याकडून उत्तम बुद्धी व उत्तम क्रियांचा स्वीकार करतात. ती अत्यंत प्रशंसनीय असतात. ॥ ५ ॥