Go To Mantra

तदृ॒तं पृ॑थिवि बृ॒हच्छ्र॑वए॒ष ऋषी॑णाम्। ज्र॒य॒सा॒नावरं॑ पृ॒थ्वति॑ क्षरन्ति॒ याम॑भिः ॥५॥

English Transliteration

tad ṛtam pṛthivi bṛhac chravaeṣa ṛṣīṇām | jrayasānāv aram pṛthv ati kṣaranti yāmabhiḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

तत्। ऋ॒तम्। पृ॒थि॒वि॒। बृ॒हत्। श्र॒वः॒ऽए॒षे। ऋषी॑णाम्। ज्र॒य॒सा॒नौ। अर॑म्। पृ॒थु। अति॑। क्ष॒र॒न्ति॒। याम॑ऽभिः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:66» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:4» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

स्त्री भी विद्वानों के समान होकर उत्तमाचरण करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पृथिवि) पृथिवी के सदृश वर्त्तमान विद्या से युक्त स्त्री ! जैसे मेघ वा योगी जन (यामभिः) प्रहरों वा प्रहर में उत्पन्न कर्म्मों से (पृथु) विस्तीर्ण जल को (अरम्) पूरा (अति, क्षरन्ति) वर्षाते हैं और जैसे (ज्रयसानौ) जाते हुए वा विशेष करके जानते हुए वर्त्तमान हैं, वैसे (ऋषीणाम्) मन्त्रार्थ जाननेवालों के (तत्) उस (बृहत्) बड़े (ऋतम्) सत्य को वा जल को (श्रवः) और अन्न वा श्रवण को (एषे) प्राप्त होने को प्रवृत्त होओ ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो स्त्रियाँ विद्यायुक्त होकर सत्य, धर्म्म और उत्तम स्वभाव को स्वीकार करके मेघ के सदृश सुखों की वृष्टि करती हैं तो वे बड़े सुख को प्राप्त होती हैं ॥५॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

स्त्रियोऽपि विद्वद्वद्भूत्वोत्तमाचरणं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे पृथिवि विदुषि स्त्रि ! यथा मेघा योगिनो वा यामभिः पृथु जलमरमति क्षरन्ति यथा च ज्रयसानौ वर्त्तेते यथर्षीणां तद् बृहदृतं श्रवश्चैषे प्रवर्त्तस्व ॥५॥

Word-Meaning: - (तत्) (ऋतम्) सत्यं जलं वा (पृथिवि) भूमिरिव वर्त्तमाने (बृहत्) महत् (श्रवः) अन्नं श्रवणं वा (एषे) प्राप्तुम् (ऋषीणाम्) मन्त्रार्थविदाम् (ज्रयसानौ) गच्छन्तौ विजानन्तौ वा (अरम्) अलम् (पृथु) विस्तीर्णम् (अति) (क्षरन्ति) वर्षन्ति (यामभिः) प्रहरैर्यमोद्भवैः कर्म्मभिर्वा ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यदि स्त्रियो विदुष्यो भूत्वा सत्यं धर्म्मं शीलं च स्वीकृत्य मेघवत्सुखानि वर्षन्ति तर्हि ता महत्सुखमाप्नुवन्ति ॥५॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या स्त्रिया विद्या, सत्य, धर्म व उत्तम स्वभाव याद्वारे मेघाप्रमाणे सुखाची वृष्टी करतात त्यांना खूप सुख मिळते. ॥ ५ ॥