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व॒यं मि॒त्रस्याव॑सि॒ स्याम॑ स॒प्रथ॑स्तमे। अ॒ने॒हस॒स्त्वोत॑यः स॒त्रा वरु॑णशेषसः ॥५॥

English Transliteration

vayam mitrasyāvasi syāma saprathastame | anehasas tvotayaḥ satrā varuṇaśeṣasaḥ ||

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Pad Path

व॒यम्। मि॒त्रस्य॑। अव॑सि। स्याम॑। स॒प्रथः॑ऽतमे। अ॒ने॒हसः॑। त्वाऽऊ॑तयः। स॒त्रा। वरु॑णऽशेषसः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:65» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (अनेहसः) नहीं हिंसक होते हुए (त्वोतयः) आपसे रक्षित और (वरुणशेषसः) उत्तम जन शेष जिनके वे (वयम्) हम लोग (सत्रा) सत्य से युक्त (मित्रस्य) मित्र के (सप्रथस्तमे) अतिविस्तार युक्त (अवति) रक्षण आदि कर्म्म में (स्याम) प्रवृत्त होवें ॥५॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि सदा कृतज्ञता करें और कृतघ्नता का दूर से त्याग करें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथाऽनेहसस्त्वोतयो वरुणशेषसो वयं सत्रा मित्रस्य सप्रथस्तमेऽवसि स्याम ॥५॥

Word-Meaning: - (वयम्) (मित्रस्य) (अवसि) रक्षणादौ कर्मणि (स्याम) प्रवृत्ता भवेम (सप्रथस्तमे) अतिविस्तारयुक्ते (अनेहसः) अहिंसकाः सन्तः (त्वोतयः) त्वया रक्षिताः (सत्रा) सत्येन युक्ताः (वरुणशेषसः) वरुण उत्तमो जनः शेषो येषान्ते ॥५॥
Connotation: - मनुष्यैः सर्वदा कृतज्ञता भाव्या कृतघ्नता च दूरतस्त्याज्या ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी सतत कृतज्ञ असावे. कृतघ्नतेचा त्याग करावा. ॥ ५ ॥