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वाचं॒ सु मि॑त्रावरुणा॒विरा॑वतीं प॒र्जन्य॑श्चि॒त्रां व॑दति॒ त्विषी॑मतीम्। अ॒भ्रा व॑सत म॒रुतः॒ सु मा॒यया॒ द्यां व॑र्षयतमरु॒णाम॑रे॒पस॑म् ॥६॥

English Transliteration

vācaṁ su mitrāvaruṇāv irāvatīm parjanyaś citrāṁ vadati tviṣīmatīm | abhrā vasata marutaḥ su māyayā dyāṁ varṣayatam aruṇām arepasam ||

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Pad Path

वाच॑म्। सु। मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒। इरा॑ऽवतीम्। प॒र्जन्यः॑। चि॒त्राम्। व॒द॒ति॒। त्विषि॑ऽमतीम्। अ॒भ्रा। व॒स॒त॒। म॒रुतः॑। सु। मा॒यया॑। द्याम्। व॒र्ष॒य॒त॒म्। अ॒रु॒णाम्। अ॒रे॒पस॑म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:63» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मित्रावरुणवाच्य विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मित्रावरुणौ) पढ़ाने और पढ़नेवाले जनो ! आप दोनों जैसे (पर्जन्यः) मेघ (वदति) शब्द करता है, वैसे (इरावतीम्) जल विद्यमान जिसमें उस (त्विषीमतीम्) अच्छी विद्याओं के प्रकाश से युक्त (चित्राम्) अद्भुत (वाचम्) वाणी को कहो जैसे (अभ्रा) मेघ प्रकाश में हैं, वैसे ही (मरुतः) मनुष्य (सु, मायया) उत्तम बुद्धि से (सु) उत्तम प्रकार (वसत) बसें और हे मित्रावरुण ! (अरुणाम्) प्राप्त होने योग्य (अरेपसम्) अपराधरहित (द्याम्) कामना की आप लोग (वर्षयतम्) वृष्टि करिये ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्या से युक्त वाणी को प्राप्त होकर मेघ के सदृश मनोरथों की वृष्टि करते हैं, वे बुद्धि से विद्वान् करके =बनाके अपराधरहित करते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मित्रावरुणवाच्यविद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे मित्रावरुणौ ! युवां यथा पर्जन्यो वदति तथेरावतीं त्विषीमतीं चित्रां वाचं वदतं यथाऽभ्राऽऽकाशे सन्ति तथैव मरुतः सु मायया सु वसत। हे मित्रावरुणावरुणामरेपसं द्यां युवां वर्षयतम् ॥६॥

Word-Meaning: - (वाचम्) (सु) सुष्ठु (मित्रावरुणौ) अध्यापकाऽध्येतारौ (इरावतीम्) इरा जलानि विद्यन्ते यस्यास्ताम् (पर्जन्य) मेघः (चित्राम्) अद्भुताम् (वदति) (त्विषीमतीम्) प्रशस्तविद्याप्रकाशयुक्ताम् (अभ्रा) अभ्राणि (वसत) (मरुतः) मानवाः (सु, मायया) शोभनया प्रज्ञया (द्याम्) कामनाम् (वर्षयतम्) (अरुणाम्) प्राप्तव्याम् (अरेपसम्) अनपराधिनीम् ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विद्यायुक्तां वाचं प्राप्य पर्जन्य इव कामान् वर्षयन्ति ते प्रज्ञया विदुषः सम्पाद्यानपराधिनः कुर्वन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विद्यायुक्त वाणी प्राप्त करून मेघाप्रमाणे मनोरथांची वृष्टी करतात ती बुद्धीद्वारे सर्वांना विद्वान करून अपराधरहित करतात. ॥ ६ ॥