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अक्र॑विहस्ता सु॒कृते॑ पर॒स्पा यं त्रासा॑थे वरु॒णेळा॑स्व॒न्तः। राजा॑ना क्ष॒त्रमहृ॑णीयमाना स॒हस्र॑स्थूणं बिभृथः स॒ह द्वौ ॥६॥

English Transliteration

akravihastā sukṛte paraspā yaṁ trāsāthe varuṇeḻāsv antaḥ | rājānā kṣatram ahṛṇīyamānā sahasrasthūṇam bibhṛthaḥ saha dvau ||

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Pad Path

अक्र॑विऽहस्ता। सु॒ऽकृते॑। प॒रः॒ऽपा। यम्। त्रासा॑थे॒ इति॑। व॒रु॒णा॒। इळा॑सु। अ॒न्तरिति॑ अ॒न्तः। राजा॑ना। क्ष॒त्रम्। अहृ॑णीयमाना। स॒हस्र॑ऽस्थूणम्। बि॒भृ॒थः॒। स॒ह। द्वौ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:62» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:31» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वरुणा) अति श्रेष्ठ सभा और सेना के स्वामी राजा और मन्त्री जनो ! वायु और सूर्य के सदृश (अक्रविहस्ता) नहीं हिंसा करनेवाले हस्त जिनके वा दानशील हस्त जिनके वे (परस्पा) दूसरों की रक्षा करनेवाले (राजाना) प्रकाशमान और (क्षत्रम्) राज्य वा धन को (अहृणीयमाना) क्रोध से रहित आचरण करते हुए (द्वौ) दोनों आप (इळासु) पृथिवियों के (अन्तः) मध्य में (सुकृते) धर्मयुक्त काम में वर्त्तमान (सह) साथ (यम्) जिसको (त्रासाथे) भय देवें उस (सहस्रस्थूणम्) सहस्र वा असंख्य थूनीवाले जगत्, राज्य वा वाहन को (बिभृथः) धारण करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजा और मन्त्रीजन ! आप स्वयं धर्मात्मा होकर सहस्र शाखा जिसकी, ऐसे राज्य के रक्षण के लिये दुष्टों को दण्ड देकर और श्रेष्ठों का सत्कार करके यशस्वी होवें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वरुणा सभासेनेशौ राजामात्यौ ! वायुसूर्य्यवदक्रविहस्ता परस्पा राजाना क्षत्रमहृणीयमाना द्वौ युवामिळास्वन्तः सुकृते वर्त्तमानौ सह यं त्रासाथे तं सहस्रस्थूणं बिभृथः ॥६॥

Word-Meaning: - (अक्रविहस्ता) अहिंसाहस्तौ दानशीलहस्तौ वा (सुकृते) धर्म्ये कर्मणि (परस्पा) यौ परां पातो रक्षतस्तौ (यम्) (त्रासाथे) भयं दद्यातम् (वरुणा) अतिश्रेष्ठौ (इळासु) पृथिवीषु (अन्तः) मध्ये (राजाना) राजमानौ (क्षत्रम्) राज्यं धनं वा (अहृणीयमाना) क्रोधरहिताचरणौ सन्तौ (सहस्रस्थूणम्) सहस्रमसंख्या वा स्थूणा यस्मिंस्तज्जगत् राज्यं यानं वा (बिभृथः) धरथः (सह) सार्धम् (द्वौ) ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजामात्या ! भवन्तः स्वयं धर्मात्मानो भूत्वा सहस्रशाखस्य राज्यस्य रक्षणाय दुष्टान् दण्डयित्वा श्रेष्ठान् सत्कृत्य यशस्विनो भवन्तु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा व मंत्र्यांनो! तुम्ही स्वतः धर्मात्मा बनून ज्या राज्याच्या सहस्त्रो शाखा असतात त्यांचे रक्षण करून दुष्टांना दंड देऊन श्रेष्ठांचा सत्कार करा व यशस्वी व्हा. ॥ ६ ॥