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अनु॑ श्रु॒ताम॒मतिं॒ वर्ध॑दु॒र्वीं ब॒र्हिरि॑व॒ यजु॑षा॒ रक्ष॑माणा। नम॑स्वन्ता धृतद॒क्षाधि॒ गर्ते॒ मित्रासा॑थे वरु॒णेळा॑स्व॒न्तः ॥५॥

English Transliteration

anu śrutām amatiṁ vardhad urvīm barhir iva yajuṣā rakṣamāṇā | namasvantā dhṛtadakṣādhi garte mitrāsāthe varuṇeḻāsv antaḥ ||

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Pad Path

अनु॑। श्रु॒ताम्। अ॒मति॑म्। वर्ध॑त्। उ॒र्वीम्। ब॒र्हिःऽइव। यजु॑षा। रक्ष॑माणा। नम॑स्वन्ता। धृ॒त॒ऽद॒क्षा॒। अधि॑ ग॒र्ते॑। मित्र॑। आसा॑थे इति॑। व॒रु॒ण॒। इळा॑सु। अ॒न्तरि॑ति अन्तः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:62» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:30» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मित्र) प्राण के सदृश (वरुण) श्रेष्ठ (धृतदक्षा) धारण किया बल जिन्होंने वे (बर्हिरिव) जल के सदृश (यजुषा) सत्सङ्ग वा क्रिया से (उर्वीम्) पृथिवी की (रक्षमाणा) रक्षा करते हुए (नमस्वन्ता) बहुत अन्नवाले (इळासु) वाणियों में और (अन्तः) मध्य (गर्त्ते) गृह में आप दोनों (आसाथे) वर्त्तमान हैं और वह (अनु, श्रुताम्) पीछे श्रवण किये गये (अमतिम्) रूप को (अधि) ऊपर को (वर्धत्) बढ़ावे, उनकी हम लोग परिचर्य्या करें ॥५॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जैसे प्राण और उदान आदि पवन सब जगत् की रक्षा करते हैं, वैसे आप लोग रक्षा करें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मित्र वरुण ! धृतदक्षा बर्हिरिव यजुषोर्वी रक्षमाणा नमस्वन्तेळास्वन्तर्गर्ते युवामासाथे सोऽनु श्रुताममतिमधि वर्धत् तान् वयं परिचरेम ॥५॥

Word-Meaning: - (अनु) (श्रुताम्) (अमतिम्) रूपम् (वर्धत्) वर्धयेत् (उर्वीम्) पृथिवीम् (बर्हिरिव) जलमिव। बर्हिरित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.२) (यजुषा) सत्सङ्गेन क्रियया वा (रक्षमाणा) यौ रक्षतस्तौ (नमस्वन्ता) बह्वन्नवन्तौ (धृतदक्षा) धृतं दक्षं बलं याभ्यां तौ (अधि) उपरिभावे (गर्त्ते) गृहे। गर्त्त इति गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (मित्र) (आसाथे) (वरुण) (इळासु) वाक्षु (अन्तः) मध्ये ॥५॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यथा प्राणोदानादयो वायवः सर्वं जगद्रक्षन्ति तथा भवन्तो रक्षन्तु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो! जसे प्राण व उदान इत्यादी वायू सगळ्या जगाचे रक्षण करतात तसे तुम्ही रक्षण करा. ॥ ५ ॥