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ए॒ष क्षे॑ति॒ रथ॑वीतिर्म॒घवा॒ गोम॑ती॒रनु॑। पर्व॑ते॒ष्वप॑श्रितः ॥१९॥

English Transliteration

eṣa kṣeti rathavītir maghavā gomatīr anu | parvateṣv apaśritaḥ ||

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Pad Path

ए॒षः। क्षे॒ति॒। रथ॑ऽवीतिः। म॒घऽवा॑। गोऽम॑तीः। अनु॑। पर्व॑तेषु। अप॑ऽश्रितः ॥१९॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:61» Mantra:19 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:29» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (पर्वतेषु) मेघों में (अपश्रितः) आश्रित सूर्य्य (गोमतीः) किरणें विद्यमान जिनमें ऐसे गमनों को (अनु) अनुकूल वर्त्ताता है, वैसे (एषः) यह (रथवीतिः) रथ से मार्ग को व्याप्त होनेवाला (मघवा) अत्यन्त धनवान् जन (क्षेति) निवास करता है ॥१९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे सूर्य्य मेघ का कारण होकर पृथक्स्वरूप है, वैसे ही विद्वान् सर्वत्र वास करता हुआ भी मोहरहित होता है ॥१९॥ इस सूक्त में प्रश्न, उत्तर और वायु आदि के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह इकसठवाँ सूक्त और उनतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा पर्वतेष्वपश्रितः सूर्य्यो गोमतीरनु वर्त्तयति तथैवैष रथवीतिर्मघवा क्षेति ॥१९॥

Word-Meaning: - (एषः) (क्षेति) निवसति (रथवीतिः) यो रथेन व्याप्नोति मार्गम् (मघवा) परमधनवान् (गोमतीः) गावः किरणा विद्यन्ते यासु गतिषु ताः (अनु) (पर्वतेषु) मेघेषु (अपश्रितः) योऽपश्रयति सः ॥१९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा सूर्य्यो मेघनिमित्तं भूत्वा पृथक्स्वरूपोऽस्ति तथैव विद्वान् सर्वत्र वासं कुर्वन्नपि निर्म्मोहो भवतीति ॥१९॥ अत्र प्रश्नोत्तरमरुदादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकषष्टितमं सूक्तमेकोनत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य मेघाचे कारण असूनही वेगळा असतो. तसा विद्वान सर्वत्र निवास करूनही मोहरहित असतो. ॥ १९ ॥