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आ ते॑ अग्न ऋ॒चा ह॒विः शुक्र॑स्य शोचिषस्पते। सुश्च॑न्द्र॒ दस्म॒ विश्प॑ते॒ हव्य॑वा॒ट् तुभ्यं॑ हूयत॒ इषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥५॥

English Transliteration

ā te agna ṛcā haviḥ śukrasya śociṣas pate | suścandra dasma viśpate havyavāṭ tubhyaṁ hūyata iṣaṁ stotṛbhya ā bhara ||

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Pad Path

आ। ते॒। अ॒ग्ने॒। ऋ॒चा। ह॒विः। शुक्र॑स्य। शो॒चि॒षः॒। पते॒। सुऽच॑न्द्र। दस्म॑। विश्प॑ते। हव्य॑ऽवाट्। तुभ्य॑म्। हू॒य॒ते॒। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:6» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:22» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शोचिषः, पते) प्रकाश के स्वामिन् (सुश्चन्द्र) अच्छे सुवर्ण से युक्त (दस्म) दुःख के नाश करनेवाले (विश्पते) प्रजाओं के पालक (अग्ने) विद्वान् राजन् ! (शुक्रस्य) शुद्ध (ते) आपकी (ऋचा) प्रशंसा से (हविः) देने योग्य पदार्थ (आ) सब प्रकार से (हूयते) दिया जाता है और हे (हव्यवाट्) देने योग्य वस्तु के देनेवाले ! (तुभ्यम्) आपके लिये सुख दिया जाता है, वह आप (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये (इषम्) अन्न को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥५॥
Connotation: - जो विद्वान् लोग अग्नि आदिकों से कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, उनके काम सिद्ध होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे शोचिषस्पते सुश्चन्द्र दस्म विश्पतेऽग्ने राजञ्छुक्रस्य ते ऋचा हविराहूयते। हे हव्यवाट् ! तुभ्यं सुखं दीयते स त्वं स्तोतृभ्य इषमा भर ॥५॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (ते) तव (अग्ने) विद्वन् (ऋचा) प्रशंसया (हविः) होतव्यम् (शुक्रस्य) शुद्धस्य (शोचिषः) प्रकाशस्य (पते) स्वामिन् (सुश्चन्द्र) शोभनं चन्द्रं हिरण्यं यस्य तत्सम्बुद्धौ (दस्म) दुःखोपक्षयितः (विश्पते) प्रजापालक (हव्यवाट्) यो हव्यं दातव्यं वहति प्राप्नोति (तुभ्यम्) (हूयते) दीयते (इषम्) अन्नम् (स्तोतृभ्यः) (आ) (भर) ॥५॥
Connotation: - ये विद्वांसोऽग्न्यादिभ्यः कार्य्याणि साध्नुवन्ति ते सिद्धाकामा जायन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वान अग्नी इत्यादींना कार्यान्वित करतात ते सिद्धकाम म्हणविले जातात ॥ ५ ॥