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ए॒वाँ अ॒ग्निम॑जुर्यमुर्गी॒र्भिर्य॒ज्ञेभि॑रानु॒षक्। दध॑द॒स्मे सु॒वीर्य॑मु॒त त्यदा॒श्वश्व्य॒मिषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥१०॥

English Transliteration

evām̐ agnim ajuryamur gīrbhir yajñebhir ānuṣak | dadhad asme suvīryam uta tyad āśvaśvyam iṣaṁ stotṛbhya ā bhara ||

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Pad Path

ए॒व। अ॒ग्निम्। अ॒जु॒र्य॒मुः॒। गीः॒ऽभिः। य॒ज्ञेभिः॑। आ॒नु॒षक्। दध॑त्। अ॒स्मे इति॑। सु॒ऽवीर्य॑म्। उ॒त। त्यत्। आ॒शु॒ऽअश्व्य॑म्। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥१०॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:6» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे सेना के स्वामिन् ! जो (गीर्भिः) वाणियों और (यज्ञेभिः) संगत कर्म्मों से (आश्वश्व्यम्) घोड़ों के सदृश वेग आदि गुणों से युक्त (सुवीर्यम्) उत्तम पराक्रमवाले (अग्निम्) अग्नि को (आनुषक्) अनुकूलता से (अजुर्यमुः) प्रेरणा दें और नियमयुक्त करें (एव) उन्हीं में (अस्मे) हम लोगों के निमित्त आप उत्तम पराक्रमयुक्त व्यवहार को (दधत्) धारण करते हैं (उत) और भी (त्यत्) उस (इषम्) इष्ट व्यवहार को (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥१०॥
Connotation: - हे राजन् ! जो अग्नि आदि की विद्या को जान के अनेक विमान आदि वाहनों को बनाते हैं, उनके लिये अन्न आदि देकर निरन्तर सत्कार कीजिये ॥१०॥ इस सूक्त में अग्नि, विद्वान् और राजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छठा सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे शवसस्पते ! ये गीर्भिर्यज्ञेभिराश्वश्व्यं सुवीर्यमग्निमानुषगजुर्यमुस्तेष्वेवाऽस्मे भवान् सुवीर्यं दधदुतापि त्यदिषं स्तोतृभ्य आ भर ॥१०॥

Word-Meaning: - (एव) (अग्निम्) पावकम् (अजुर्यमुः) प्रक्षिपेयुर्नियच्छेयुश्च (गीर्भिः) वाग्भिः (यज्ञेभिः) सङ्गतैः कर्मभिः (आनुषक्) आनुकूल्येन (दधत्) दधाति (अस्मे) अस्मासु (सुवीर्यम्) सुष्ठुपराक्रमम् (उत) (त्यत्) ताम् (आश्वश्व्यम्) आशवो वेगादयो गुणा अश्वा इव यस्मिँस्तम् (इषम्) (स्तोतृभ्यः) (आ) (भर) ॥१०॥
Connotation: - हे राजन् ! य अग्न्यादिविद्यां विदित्वाऽनेकानि विमानादीनि यानानि निर्मिमते तेभ्योऽन्नादिकं दत्त्वा सततं सत्कुर्या इति ॥१०॥ अत्राग्निविद्वद्राजगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षष्ठं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जे अग्निविद्या जाणून विमान इत्यादी याने तयार करतात त्यांचा अन्न इत्यादींनी सत्कार कर. ॥ १० ॥