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प्रथि॑ष्ट॒ याम॑न्पृथि॒वी चि॑देषां॒ भर्ते॑व॒ गर्भं॒ स्वमिच्छवो॑ धुः। वाता॒न्ह्यश्वा॑न्धु॒र्या॑युयु॒ज्रे व॒र्षँ स्वेदं॑ चक्रिरे रु॒द्रिया॑सः ॥७॥

English Transliteration

prathiṣṭa yāman pṛthivī cid eṣām bharteva garbhaṁ svam ic chavo dhuḥ | vātān hy aśvān dhury āyuyujre varṣaṁ svedaṁ cakrire rudriyāsaḥ ||

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Pad Path

प्रथि॑ष्ट। याम॑न्। पृ॒थि॒वी। चि॒त्। ए॒षा॒म्। भर्ता॑ऽइव। गर्भ॑म्। स्वम्। इत्। शवः॑। धुः॒। वाता॑न्। हि। अश्वा॑न्। धु॒रि। आ॒ऽयु॒यु॒ज्रे। व॒र्षम्। स्वेद॑म्। च॒क्रि॒रे॒। रु॒द्रिया॑सः ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:58» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:23» Mantra:7 | Mandal:5» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (एषाम्) इनके मध्य में (पृथिवी) भूमि (यामन्) प्रहर में (गर्भम्) गर्भ को (भर्त्तेव) स्वामी के सदृश (प्रथिष्ट) प्रकट करती है, वैसे आप लोग (स्वम्) सुख और (शवः) गमन को (इत्) ही (धुरि) वाहन के मध्य में (धुः) धारण करते और (अश्वान्) शीघ्र चलनेवाले (वातान्) पवनों को (आयुयुज्रे) सब ओर से युक्त करते और (चित्) भी (रुद्रियासः) दुष्टों के रुलानेवालों में चतुर हुए (स्वेदम्) पसीने के सदृश (हि) निश्चय (वर्षम्) वृष्टि को (चक्रिरे) करते हैं ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य पृथिवी के सदृश क्षमाशील और विस्तीर्ण विद्यावाले वाहनों के पवन रूप घोड़ों को संयुक्त करके और वृष्टि के कारणों का निर्माण करके कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वे सम्पूर्ण सुख कर सकते हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथैषां मध्ये पृथिवी यामन् गर्भं भर्त्तेव प्रथिष्ट तथा भवन्तः स्वं शव इद् धुरि धुरश्वान् वातानायुयुज्रे चिदपि रुद्रियासः सन्त स्वेदमिव हि वर्षं चक्रिरे ॥७॥

Word-Meaning: - (प्रथिष्ट) प्रथते (यामन्) यामनि (पृथिवी) भूमिः (चित्) अपि (एषाम्) (भर्त्तेव) (गर्भम्) (स्वम्) (इत्) (शवः) गमनम् (धुः) दधति (वातान्) वायून् (हि) यतः (अश्वान्) सद्योगामिनः (धुरि) यानमध्ये (आयुयुज्रे) समन्तात् युञ्जते (वर्षम्) (स्वेदम्) प्रस्वेदमिव (चक्रिरे) (रुद्रियासः) रुद्रेषु दुष्टरोदयितृषु कुशलाः ॥७॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्याः पृथिवीवत् क्षमाशीला विस्तीर्णविद्या यानेषु वायूनश्वान् संयोज्य वर्षानिमित्तान् निर्माय कार्याणि साध्नुवन्ति ते सर्वं सुखं कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील असून विस्तीर्ण विद्यारूपी वाहनाला पवनरूपी घोडे संयुक्त करतात व वृष्टीचे कारण निर्माण करून कार्य सिद्ध करतात ते संपूर्ण सुखी करू शकतात. ॥ ७ ॥