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तद्वी॒र्यं॑ वो मरुतो महित्व॒नं दी॒र्घं त॑तान॒ सूर्यो॒ न योज॑नम्। एता॒ न यामे॒ अगृ॑भीतशोचि॒षोऽन॑श्वदां॒ यन्न्यया॑तना गि॒रिम् ॥५॥

English Transliteration

tad vīryaṁ vo maruto mahitvanaṁ dīrghaṁ tatāna sūryo na yojanam | etā na yāme agṛbhītaśociṣo naśvadāṁ yan ny ayātanā girim ||

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Pad Path

तत्। वी॒र्य॑म्। वः॒। म॒रु॒तः॒। म॒हि॒ऽत्व॒नम्। दी॒र्घम्। त॒ता॒न॒। सूर्यः॑। न। योज॑नम्। एताः॑। न। यामे॑। अगृ॑भीतऽशोचिषः। अन॑श्वऽदाम्। यत्। नि। अया॑तन। गि॒रिम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:54» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) वायु के सदृश वर्त्तमान मनुष्यो ! (सूर्यः) सूर्य्य (योजनम्) युक्त करते हैं जिससे उस आकर्षण नामक के (न) सदृश और (महित्वनम्) बड़प्पन को जैसे वैसे (दीर्घम्) विशाल (वः) आपके (तत्) उस (वीर्यम्) पराक्रम को (ततान) विस्तृत करता है और (अगृभीतशोचिषः) नहीं ग्रहण किया तेज जिन्होंने वे (यामे) प्रहर में (एताः) ये गमन (न) जैसे (अनश्वदाम्) नहीं घोड़े जिसमें उस गमन और (गिरिम्) मेघ को देते हैं और (यत्) जिसको आप लोग (नि, अयातना) प्राप्त हूजिये, उस सब को हम लोग ग्रहण करें ॥५॥
Connotation: - जो लोग सूर्य और मेघों के गुणों को जान कर सामर्थ्य और धन को इकट्ठा करते हैं, वे परोपकारी होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं वेदितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मरुतः ! सूर्यो योजनं न महित्वनं दीर्घं वस्तद्वीर्यं ततानागृभीतशोचिषो याम एता गतयो नानश्वदां गिरिं ददति। यद्यूयं न्ययातना तत्सर्वं वयं गृह्णीमः ॥५॥

Word-Meaning: - (तत्) (वीर्यम्) (वः) युष्माकम् (मरुतः) वायुवद्वर्त्तमानाः (महित्वनम्) महत्त्वम् (दीर्घम्) विशालम् (ततान) तनयति (सूर्यः) (नः) इव (योजनम्) युजन्ति येन तदाकर्षणाख्यम् (एताः) गतयः (न) इव (यामे) प्रहरे (अगृभीतशोचिषः) न गृहीतं शोचिस्तेजो यैस्ते (अनश्वदाम्) अविद्यमाना अश्वा तस्यां तां गतिम् (यत्) (नि) (अयातना) प्राप्नुत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गिरिम्) मेघम् ॥५॥
Connotation: - ये सूर्यमेघगुणान्विदित्वा सामर्थ्यं धनं च वयन्ति ते परोपकारिणो भवन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक सूर्य व मेघांचे गुण जाणून सामर्थ्य व धन प्राप्त करतात ते परोपकारी असतात. ॥ ५ ॥