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देवी॑र्द्वारो॒ वि श्र॑यध्वं सुप्राय॒णा न॑ ऊ॒तये॑। प्रप्र॑ य॒ज्ञं पृ॑णीतन ॥५॥

English Transliteration

devīr dvāro vi śrayadhvaṁ suprāyaṇā na ūtaye | pra-pra yajñam pṛṇītana ||

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Pad Path

देवीः॑। द्वा॒रः॒। वि। श्र॒य॒ध्व॒म्। सु॒ऽप्र॒ऽअ॒य॒नाः। नः॒। ऊ॒तये॑। प्रऽप्र॑। य॒ज्ञम्। पृ॒णी॒त॒न॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:5» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब गृहाश्रमविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे पुरुषो ! तुम (सुप्रायणाः) उत्तम प्रकार गृहों में प्रवेश हो जिनसे ऐसी (देवीः) श्रेष्ठ और शुद्ध (द्वारः) द्वारों के सदृश सुख की कारणभूत उत्तम स्त्रियों का (वि, श्रयध्वम्) विशेष करके सेवन करो और (नः) हम लोगों के (ऊतये) रक्षण आदि के लिये (यज्ञम्) गृहाश्रमव्यवहार को (प्रप्र, पृणीतन) पुष्ट करो ॥५॥
Connotation: - यदि तुल्य गुण, कर्म, स्वभाववाले स्त्री-पुरुष विवाह करके गृहाश्रम का आरम्भ करें तो पूर्ण सुख पावें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ गृहाश्रमविषयमाह ॥

Anvay:

हे पुरुषा ! यूयं सुप्रायणा देवीर्द्वार इवोत्तमाः पत्नीर्वि श्रयध्वं न ऊतये यज्ञं प्रप्र पृणीतन ॥५॥

Word-Meaning: - (देवीः) दिव्याः शुद्धाः (द्वारः) द्वाराणीव सुखनिमित्ताः (वि) (श्रयध्वम्) विशेषेण सेवध्वम् (सुप्रायणाः) सुष्ठु प्रकृष्टमयनं गमनं याभ्यस्ताः (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (प्रप्र) (यज्ञम्) गृहाश्रमव्यवहारम् (पृणीतन) अलं कुरुत ॥५॥
Connotation: - यदि तुल्यगुणकर्म्मस्वभावाः स्त्रीपुरुषा विवाहं कृत्वा गृहाश्रमारभेरंस्तर्हि पूर्णं सुखं लभेरन् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर समान गुण कर्म स्वभावाच्या स्त्री-पुरुषांनी विवाह करून गृहस्थारंभाचा आरंभ केला तर पूर्ण सुख प्राप्त होईल ॥ ५ ॥