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प्र ये वसु॑भ्य॒ ईव॒दा नमो॒ दुर्ये मि॒त्रे वरु॑णे सू॒क्तवा॑चः। अवै॒त्वभ्वं॑ कृणु॒ता वरी॑यो दि॒वस्पृ॑थि॒व्योरव॑सा मदेम ॥५॥

English Transliteration

pra ye vasubhya īvad ā namo dur ye mitre varuṇe sūktavācaḥ | avaitv abhvaṁ kṛṇutā varīyo divaspṛthivyor avasā madema ||

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Pad Path

प्र। ये। वसु॑ऽभ्यः। ईव॑त्। आ। नम॑। दुः। ये। मि॒त्रे। वरु॑णे। सू॒क्तऽवा॑चः। अव॑। ए॒तु॒। अभ्व॑म्। कृ॒णु॒त। वरी॑यः। दि॒वःपृ॑थि॒व्योः। अव॑सा। म॒दे॒म॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:49» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को क्या करके क्या प्राप्त करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (ये) जो (मित्रे) मित्र (वरुणे) उत्तम तिथि के निमित्त (ईवत्) गतिमान् तथा रक्षणवान् पदार्थ को (प्र, आ, दुः) उत्तम प्रकार देवें वा (ये) जो तुम लोग (वसुभ्यः) धनों के लिये (नमः) अन्न को (कृणुता) सिद्ध करो उनसे युक्त (सूक्तवाचः) उत्तम प्रशंसित वाणीवाले हम लोग (दिवः, पृथिव्योः) प्रकाश सूर्य्य और भूमि के मध्य में जिससे (वरीयः, अभ्वम्) अत्युत्तम धनादि तथा अत्यन्त (अव, एतु) प्राप्त हो उसकी (अवसा) रक्षा से (मदेम) आनन्दित हों ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! पुरुषार्थ से लक्ष्मी को और उससे अन्न आदि को इकट्ठा कर बड़े सुख को प्राप्त होकर सब का रक्षण करो ॥५॥ इस सूक्त में सूर्य और विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनचासवाँ सूक्त और तीसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः किं कृत्वा किं प्राप्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्यो ! ये मित्रे वरुण ईवत्प्रा दुर्ये यूयं वसुभ्यो नमः कृणुता तद्युक्ता सूक्तवाचो वयं दिवस्पृथिव्योर्मध्ये येन वरीयोऽभ्वमवैतु तदवसा मदेम ॥५॥

Word-Meaning: - (प्र) (ये) (वसुभ्यः) धनेभ्यः (ईवत्) गतिरक्षणवत् (आ) (नमः) अन्नम् (दुः) दद्युः (ये) (मित्रे) सख्याम् (वरुणे) उत्तमतिथौ (सूक्तवाचः) सुस्तुता सुप्रशंसिता वाग्येषान्ते (अव) (एतु) प्राप्नोतु (अभ्वम्) महत् (कृणुता) कुरुत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वरीयः) अत्युत्तमं धनादिकम् (दिवः) (पृथिव्योः) सूर्य्यभूम्योर्मध्ये (अवसा) रक्षणादिना (मदेम) ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्याः ! पुरुषार्थेन श्रियं तस्या अन्नादिकं सञ्चित्य महत् सुखं प्राप्य सर्वेषां रक्षणं विदधत्विति ॥५॥ अत्र सूर्यविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनपञ्चाशत्तमं सूक्तं तृतीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! पुरुषार्थाने लक्ष्मी वाढवून त्याद्वारे अन्न इत्यादी संचित करून खूप सुख प्राप्त करून सर्वांचे रक्षण करा. ॥ ५ ॥