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वि त॑न्वते॒ धियो॑ अस्मा॒ अपां॑सि॒ वस्त्रा॑ पु॒त्राय॑ मा॒तरो॑ वयन्ति। उ॒प॒प्र॒क्षे वृष॑णो॒ मोद॑माना दि॒वस्प॒था व॒ध्वो॑ य॒न्त्यच्छ॑ ॥६॥

English Transliteration

vi tanvate dhiyo asmā apāṁsi vastrā putrāya mātaro vayanti | upaprakṣe vṛṣaṇo modamānā divas pathā vadhvo yanty accha ||

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Pad Path

वि। त॒न्व॒ते॒। धियः॑। अ॒स्मै॒। अपां॑सि। वस्त्रा॑। पु॒त्राय॑। मा॒तरः॑। व॒य॒न्ति॒। उ॒प॒ऽप्र॒क्षे॒। वृष॑णः। मोद॑मानाः। दि॒वः। प॒था। व॒ध्वः॑। य॒न्ति॒। अच्छ॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:47» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को चाहिये कि युवा अवस्था ही में स्वयंवर विवाह करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (दिवः) कामना और (मोदमानाः) आनन्द करती हुई (वध्वः) युवावस्थायुक्त स्त्रियाँ (पथा) गृहाश्रम के मार्ग से वर्त्तमान (उपप्रक्षे) सम्बन्ध में (वृषणः) युवा पुरुषों को (अच्छ) उत्तम प्रकार (यन्ति) प्राप्त होती हैं, वे (मातरः) माता (अस्मै) इस व्यवहार से सिद्ध (पुत्राय) पुत्र के लिये (धियः) बुद्धियों और (अपांसि) कर्म्मों को (वि, तन्वते) विस्तार करती हैं और (वस्त्रा) वस्त्रों को (वयन्ति) बनाती हैं ॥६॥
Connotation: - जो स्त्री और पुरुष ब्रह्मचर्य्य से विद्याओं को पढ़ कर युवावस्था में वर्त्तमान गृहाश्रम की कामना करते हुए परस्पर प्रीति से स्वयंवर विवाह करके धर्म से सन्तानों को उत्पन्न कर और उत्तम प्रकार शिक्षा देकर शरीर और आत्मा के बल का विस्तार करते हैं और जैसे वस्त्रों से शरीर को वैसे गृहाश्रम के व्यवहार का आच्छादन करके आनन्द करते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैर्युवावस्थायामेव स्वयंवरो विवाहः कर्त्तव्य इत्याह ॥

Anvay:

या दिवो मोदमाना वध्वः स्त्रियः पथोपप्रक्षे वृषणोऽच्छ यन्ति ता मातरोऽस्मै पुत्राय धियोऽपांसि वि तन्वते वस्त्रा वयन्ति ॥६॥

Word-Meaning: - (वि) (तन्वते) विस्तारयन्ति (धियः) प्रज्ञाः (अस्मै) व्यवहारसिद्धाय (अपांसि) कर्म्माणि (वस्त्रा) वस्त्राणि (पुत्राय) (मातरः) (वयन्ति) निर्मिमते (उपप्रक्षे) सम्पर्के (वृषणः) यूनः (मोदमानाः) आनन्दन्त्यः (दिवः) कामयमानाः (पथा) गृहाश्रममार्गेण वर्त्तमानाः (वध्वः) युवत्यः स्त्रियः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अच्छ) ॥६॥
Connotation: - ये स्त्रीपुरुषा ब्रह्मचर्य्येण विद्या अधीत्य युवावस्थास्थाः सन्तो गृहाश्रमं कामयमानाः परस्परस्मिन् प्रीत्या स्वयंवरं विवाहं विधाय धर्म्येण सन्तानानुत्पाद्य सुशिक्ष्य शरीरात्मबलं विस्तृणन्ति वस्त्रैः शरीरमिव गृहाश्रमव्यवहारमाच्छाद्यानन्दन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे स्त्री-पुरुष ब्रह्मचर्याने विद्या शिकून युवावस्थेत गृहस्थाश्रमाची कामना करत परस्पर प्रीतीने स्वयंवर विवाह करून धर्माने संतान उत्पन्न करून उत्तम प्रकारे शिक्षण देऊन शरीर व आत्म्याचे बळ वाढवितात व जसे वस्त्रांनी शरीराचे आच्छादन केले जाते. तसे गृहस्थाश्रमाच्या व्यवहाराचे आच्छादन करून आनंद भोगतात. ॥ ६ ॥