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इ॒दं वपु॑र्नि॒वच॑नं जनास॒श्चर॑न्ति॒ यन्न॒द्य॑स्त॒स्थुरापः॑। द्वे यदीं॑ बिभृ॒तो मा॒तुर॒न्ये इ॒हेह॑ जा॒ते य॒म्या॒३॒॑ सब॑न्धू ॥५॥

English Transliteration

idaṁ vapur nivacanaṁ janāsaś caranti yan nadyas tasthur āpaḥ | dve yad īm bibhṛto mātur anye iheha jāte yamyā sabandhū ||

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Pad Path

इ॒दम्। वपुः॑। नि॒ऽवच॑नम्। ज॒ना॒सः॒। चर॑न्ति। यत्। न॒द्यः॑। त॒स्थुः। आपः॑। द्वे॒ इति॑। यत्। ई॒म्। बि॒भृ॒तः। मा॒तुः। अ॒न्ये॒ इति॑। इ॒हऽइ॑ह। जा॒ते इति॑। य॒म्या॑। सब॑न्धू इति॑ सऽब॑न्धू॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:47» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (इहेह) इसी संसार में (द्वे) दो (यम्या) रात्रि और दिन (सबन्धू) तुल्य बन्धु जिनका उनके सदृश वर्त्तमान और (मातुः) माता से (अन्ये) अन्य (जाते) उत्पन्न हुए (ईम्) जल को (बिभृतः) धारण करते हैं और (यत्) जो संसार का उपकार करते हैं और (यत्) जो (जनासः) विद्वान् जन जैसे (नद्यः) नदियाँ (आपः) जलों को वैसे (इदम्) इस (निवचनम्) निश्चित वचन जिसका उस (वपुः) शरीर को (चरन्ति) प्राप्त होते और (तस्थुः) स्थित होते हैं, वैसे इनको विशेष कर जानिये ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्यों को चाहिये कि जैसे रात्रि-दिन क्रम से व्यवहार करते हैं, वैसे क्रम से आहार-विहार करके शरीर की रक्षा करनी चाहिये ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं विज्ञातव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथेहेह द्वे यम्या सबन्धू मातुरन्ये जाते ईं बिभृतो यद्ये जगदुपकुरुतो यद्ये जनासो नद्य आप इवेदं निवचनं वपुश्चरन्ति तस्थुस्तथैतानि विजानीत ॥५॥

Word-Meaning: - (इदम्) (वपुः) शरीरम् (निवचनम्) निश्चितं वचनं यस्य तत् (जनासः) विद्वांसः (चरन्ति) (यत्) ये (नद्यः) सरित इव (तस्थुः) तिष्ठन्ति (आपः) जलानि (द्वे) (यत्) ये (ईम्) उदकम् (बिभृतः) (मातुः) जनन्याः (अन्ये) (इहेह) (जाते) (यम्या) रात्रिदिने (सबन्धू) समानो बन्धुर्ययोस्तद्वद्वर्त्तमाने ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्यैर्यथा रात्रिदिने क्रमेण व्यवहरतस्थैव क्रमेणाहारविहारौ कृत्वा शरीरं संरक्षणीयम् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी रात्र व दिवस जसा व्यवहार करतात त्या क्रमाने आहारविहार करून शरीराचे रक्षण केले पाहिजे. ॥ ५ ॥