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उ॒त त्ये नः॒ पर्व॑तासः सुश॒स्तयः॑ सुदी॒तयो॑ न॒द्य१॒॑स्त्राम॑णे भुवन्। भगो॑ विभ॒क्ता शव॒साव॒सा ग॑मदुरु॒व्यचा॒ अदि॑तिः श्रोतु मे॒ हव॑म् ॥६॥

English Transliteration

uta tye naḥ parvatāsaḥ suśastayaḥ sudītayo nadyas trāmaṇe bhuvan | bhago vibhaktā śavasāvasā gamad uruvyacā aditiḥ śrotu me havam ||

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Pad Path

उ॒त। त्ये। नः॒। पर्व॑तासः। सु॒ऽश॒स्तयः॑। सु॒ऽदी॒तयः॑। न॒द्यः॑। त्राम॑णे। भु॒व॒न्। भगः॑। वि॒ऽभ॒क्ता। शव॑सा। अव॑सा। आ। ग॒म॒त्। उ॒रु॒ऽव्यचाः॑। अदि॑तिः॑। श्रो॒तु॒। मे॒। हव॑म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:46» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:28» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (पर्वतासः) मेघों के सदृश (सुशस्तयः) उत्तम प्रशंसायुक्त (नद्यः) नदियों के सदृश (सुदीतयः) प्रशंसित प्रकाशवाले (नः) हम लोगों को वा हमारे (त्रामणे) पालन व्यवहार के लिये (भुवन्) हों (उत) और (उरुव्यचाः) बहुतों में व्याप्त (अदितिः) खण्डन से रहित (भगः) आदर करने योग्य ऐश्वर्य का योग (विभक्ता) विभाग कर देनेवाला (शवसा) बल और (अवसा) रक्षण आदि से (आ, गमत्) सब प्रकार प्राप्त होवे और (मे) मेरे (हवम्) शब्द को (श्रोतु) सुने (त्ये) वे और वह सत्कार करने योग्य होवें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मेघ के सदृश संसार के पालन करनेवाले प्रशंसित न्याय का विधान कर सम्पूर्ण प्रजा की विनती सुन के न्याय करें, वे विनययुक्त होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये पर्वतास इव सुशस्तयो नद्य इव सुदीतयो नस्त्रामणे भुवन्। उत उरुव्यचा अदितिर्भगो विभक्ता शवसाऽवसाऽऽगमन्मे हवं श्रोतु त्ये स च सत्कर्त्तव्या भवेयुः ॥६॥

Word-Meaning: - (उत) (त्ये) ते (नः) अस्मानस्माकं वा (पर्वतासः) मेघा इव (सुशस्तयः) शोभनप्रशंसाः (सुदीतयः) प्रशंसितप्रकाशाः (नद्यः) सरितः (त्रामणे) पालनव्यवहाराय (भुवन्) भवन्तु (भगः) भजनीय ऐश्वर्य्ययोगः (विभक्ता) विभज्य दाता (शवसा) बलेन (अवसा) रक्षणादिना (आ) (गमत्) आगच्छेत् समन्तात् प्राप्नुयात् (उरुव्यचाः) बहुषु व्याप्तः (अदितिः) अविद्यमानखण्डनः (श्रोतु) शृणोतु (मे) मम (हवम्) शब्दम् ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये मेघवज्जगत्पालकाः प्रशंसितं न्यायं विधाय सर्वस्याः प्रजाया विनतिं श्रुत्वा न्यायं कुर्य्युस्ते विनयवन्तो भवन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे मेघाप्रमाणे जगाचे पालन करणारे असतात. न्यायाचे यथायोग्य नियम तयार करतात. संपूर्ण प्रजेची विनंती ऐकून न्याय करतात ते विनयी असतात. ॥ ६ ॥