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एतो॒ न्व१॒॑द्य सु॒ध्यो॒३॒॑ भवा॑म॒ प्र दु॒च्छुना॑ मिनवामा॒ वरी॑यः। आ॒रे द्वेषां॑सि सनु॒तर्द॑धा॒माया॑म॒ प्राञ्चो॒ यज॑मान॒मच्छ॑ ॥५॥

English Transliteration

eto nv adya sudhyo bhavāma pra ducchunā minavāmā varīyaḥ | āre dveṣāṁsi sanutar dadhāmāyāma prāñco yajamānam accha ||

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Pad Path

एतो॒ इति॑। नु। अ॒द्य। सु॒ऽध्यः॑। भवा॑म। प्र। दु॒च्छुनाः॑। मि॒न॒वा॒म॒। वरी॑यः। आ॒रे। द्वेषां॑सि। स॒नु॒तः। द॒धा॒म॒। अया॑म। प्राञ्चः॑। यज॑मानम्। अच्छ॑ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:45» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (अद्य) आज (एतो) ये हम लोग (नु) शीघ्र (सुध्यः) अच्छी बुद्धिवाले (भवाम) हों और जो (दुच्छुनाः) दुष्ट कुत्तों के सदृश वर्त्तमान उनका (प्र, मिनवामा) अत्यन्त नाश करें और (द्वेषांसि) द्वेषयुक्त कर्म्मों को (आरे) समीप वा दूर में (अयाम) प्राप्त करावें (प्राञ्चः) प्राचीन काल में वर्त्तमान अधिक अवस्थावाले हम लोग (सनुतः) सदा (वरीयः) अत्यन्त श्रेष्ठ (यजमानम्) मिलनेवाले को (अच्छ) उत्तम प्रकार (दधाम) धारण करें, वैसे आप लोग भी धारण करो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मनुष्य विज्ञान को बढ़ाते, दुष्टों का निवारण करते और द्वेष आदि दोषों से रहित हुए सनातन सत्य को धारण करते हैं, वे अत्यन्त प्रशंसा के योग्य होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथाऽद्यैतो वयं नु सुध्यो भवाम ये दुच्छुनास्तान् प्र मिनवामा द्वेषांस्यार अयाम प्राञ्चो वयं सनुतर्वरीयो यजमानं चाच्छ दधाम तथा यूयमपि धत्त ॥५॥

Word-Meaning: - (एतो) एते (नु) (अद्य) (सुध्यः) शोभना धीर्येषान्ते (भवाम) (प्र) (दुच्छुनाः) दुष्टाः श्वान इव वर्त्तमानाः (मिनवामा) हिंसेम। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वरीयः) अतिशयेन वरम् (आरे) समीपे दूरे वा (द्वेषांसि) द्वेषयुक्तानि कर्म्माणि (सनुतः) सदा (दधाम) (अयाम) गमयेम (प्राञ्चः) प्राक्तना चिरमायवः (यजमानम्) सङ्गन्तारम् (अच्छ) ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये मनुष्या विज्ञानं वर्धयन्तो दुष्टान् निवारयन्तो द्वेषादिदोषरहिताः सन्तस्सनातनं सत्यं धरन्ति तेऽतीव प्रशंसनीया भवन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विज्ञान वाढवितात. दुष्टांचे निवारण करतात. ती दोषरहित असून सनातन सत्य स्वीकारतात. ती अत्यंत प्रशंसनीय असतात. ॥ ५ ॥