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वि॒दा दि॒वो वि॒ष्यन्नद्रि॑मु॒क्थैरा॑य॒त्या उ॒षसो॑ अ॒र्चिनो॑ गुः। अपा॑वृत व्र॒जिनी॒रुत्स्व॑र्गा॒द्वि दुरो॒ मानु॑षीर्दे॒व आ॑वः ॥१॥

English Transliteration

vidā divo viṣyann adrim ukthair āyatyā uṣaso arcino guḥ | apāvṛta vrajinīr ut svar gād vi duro mānuṣīr deva āvaḥ ||

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Pad Path

वि॒दाः। दि॒वः। वि॒ऽस्यन्। अद्रि॑म्। उ॒क्थैः। आ॒ऽय॒त्याः। उ॒षसः॑। अ॒र्चिनः॑। गुः॒। अप॑। अ॒वृ॒त॒। व्र॒जिनीः॑। उत्। स्वः॑। गा॒त्। वि। दुरः॑। मानु॑षीः। दे॒वः। आ॒व॒रित्या॑वः ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:45» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले पैंतालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में आदित्य विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (स्वः, देवः) श्रेष्ठ गुणों से विशिष्ट सूर्य्य वा मेघ (मानुषीः) मनुष्य सम्बन्धी (दुरः) द्वारों को (वि, गात्) विशेषतया प्राप्त होता और (आवः) ढाँपता है और (अद्रिम्) मेघ को और (व्रजिनीः) वर्जन क्रियाओं को (उद्, अप, अवृत) अत्यन्त दूर करते हैं, वैसे ही (दिवः) कामना करते हुए (विदाः) विद्वान् जन (अर्चिनः) सत्कार करनेवाले (उक्थैः) वेदविद्या से उत्पन्न हुए उपदेशों से (आयत्याः) पीछे से हुए (उषसः) प्रभात कालों के सदृश (विष्यन्) व्याप्त होते और (गुः) चलते हैं, उनकी निरन्तर सेवा करो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो प्रभातकाल और सूर्य्य के सदृश मनुष्यरूप प्रजाओं में विद्या और धर्म्म के प्रकाश करनेवाले होवें, वे ही अध्यापक और उपदेशक होवें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्य्यविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा स्वरादित्यो देवो मेघो वा मानुषीर्दुरो वि गादावोऽद्रिं व्रजिनीश्च उदपावृत तथैव दिवो विदा अर्चिन उक्थैरायत्या उषस इव विष्यन् गुस्तान् सततं सेवध्वम् ॥१॥

Word-Meaning: - (विदाः) विद्वांसः (दिवः) कामयमानाः (विष्यन्) व्याप्नुवन्ति (अद्रिम्) मेघम् (उक्थैः) वेदविद्याजन्यैरुपदेशैः (आयत्याः) पश्चाद्भवाः (उषसः) प्रभाताः (अर्चिनः) सत्कर्त्तारः (गुः) गच्छन्ति (अप) (अवृत) दूरीकुर्वन्ति (व्रजिनीः) वर्जनक्रियाः (उत्) (स्वः) आदित्यः (गात्) प्राप्नोति (वि) (दुरः) द्वाराणि (मानुषीः) मनुष्याणामिमाः (देवः) दिव्यगुणः (आवः) आवृणोति ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । य उषसादित्यवन्मनुष्यप्रजासु विद्याधर्मप्रकाशकाः स्युस्त एवाऽध्यापकोपदेशका भवन्तु ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सूर्य व विद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे उषःकालाप्रमाणे व सूर्याप्रमाणे (प्रकाशमान असून) प्रजेमध्ये विद्या व धर्माची शिकवण देतात त्यांनी शिक्षक व उपदेशक व्हावे. ॥ १ ॥