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समि॑न्द्र णो॒ मन॑सा नेषि॒ गोभिः॒ सं सू॒रिभि॑र्हरिवः॒ सं स्व॒स्ति। सं ब्रह्म॑णा दे॒वहि॑तं॒ यदस्ति॒ सं दे॒वानां॑ सुम॒त्या य॒ज्ञिया॑नाम् ॥४॥

English Transliteration

sam indra ṇo manasā neṣi gobhiḥ saṁ sūribhir harivaḥ saṁ svasti | sam brahmaṇā devahitaṁ yad asti saṁ devānāṁ sumatyā yajñiyānām ||

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Pad Path

सम्। इ॒न्द्र॒। नः॒। मन॑सा। ने॒षि॒। गोभिः॑। सम्। सू॒रिऽभिः॑। ह॒रि॒ऽवः॒। सम्। स्व॒स्ति। सम्। ब्रह्म॑णा। दे॒वऽहि॑तम्। यत्। अस्ति॑। सम्। दे॒वाना॑म्। सु॒ऽम॒त्या। य॒ज्ञिया॑नाम् ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:42» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:17» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त जिससे आप (यत्) जो (गोभिः) इन्द्रियों वा वाणियों के साथ (सम्, स्वस्ति) उत्तम सुख (अस्ति) है वह (नः) हम लोगों को (मनसा) विज्ञान के साथ (सम्, नेषि) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं और हे (हरिवः) श्रेष्ठ मनुष्यों से युक्त ! जो (सूरिभिः) विद्वानों के साथ सुख है, वह हम लोगों को (सम्) एक साथ प्राप्त करते हैं और जो (ब्रह्मणा) वेद, धन वा अन्न के साथ (देवहितम्) विद्वानों का हितकारक सुख है, वह हम लोगों को (सम्) एक साथ प्राप्त करते हैं और जो (यज्ञियानाम्) यज्ञ करनेवाले (देवानाम्) विद्वानों की (सुमत्या) श्रेष्ठ बुद्धि के साथ विद्वानों का हितकारक सुख है, वह हम लोगों के लिये (सम्) एक साथ प्राप्त करते हैं, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! आप लोग सत्यवाणी, विद्वानों का सङ्ग, वेदविद्या और श्रेष्ठ बुद्धि के सहित उत्तम प्रकार शोभित हुए अभीष्ट सुख को प्राप्त हूजिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यतस्त्वं यद् गोभिः सह सं स्वस्त्यस्ति तन्नो मनसा सन्नेषि। हे हरिवो ! यत्सूरिभिः सह स्वस्त्यस्ति तन्नः सन्नेषि। यद् ब्रह्मणा सह देवहितं स्वस्त्यस्ति तन्न सन्नेषि। यद्यज्ञियानां देवानां सुमत्या सह देवहितं स्वस्त्यस्ति तन्नः सन्नेषि तस्मात् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥४॥

Word-Meaning: - (सम्) उत्तमप्रकारेण (इन्द्र) विद्यैश्वर्य्यसम्पन्न (नः) अस्मान् (मनसा) विज्ञानेन (नेषि) नयसि (गोभिः) इन्द्रियैर्वाग्भिर्वा (सम्) (सूरिभिः) विद्वद्भिस्सह (हरिवः) प्रशस्तमनुष्ययुक्त (सम्) (स्वस्ति) सुखम् (सम्) (ब्रह्मणा) वेदेन धनेनाऽन्नेन वा (देवहितम्) (यत्) (अस्ति) (सम्) (देवानाम्) विदुषाम् (सुमत्या) श्रेष्ठया प्रज्ञया (यज्ञियानाम्) यज्ञकर्तॄणाम् ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयं सत्यवाचा विद्वत्सङ्गेन वेदविद्यया श्रेष्ठप्रज्ञया च सहिताः सुभूषिताः सन्तोऽभीष्टं सुखं लभध्वम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! तुम्ही सत्यवचन, विद्वानांचा संग, वेद-विद्या व श्रेष्ठ बुद्धीसह शोभित व्हा व मनोवांछित सुख प्राप्त करा. ॥ ४ ॥