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तां वो॑ देवाः सुम॒तिमू॒र्जय॑न्ती॒मिष॑मश्याम वसवः॒ शसा॒ गोः। सा नः॑ सु॒दानु॑र्मृ॒ळय॑न्ती दे॒वी प्रति॒ द्रव॑न्ती सुवि॒ताय॑ गम्याः ॥१८॥

English Transliteration

tāṁ vo devāḥ sumatim ūrjayantīm iṣam aśyāma vasavaḥ śasā goḥ | sā naḥ sudānur mṛḻayantī devī prati dravantī suvitāya gamyāḥ ||

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Pad Path

ताम्। वः॒। दे॒वाः॒। सु॒ऽम॒तिम्। ऊ॒र्जय॑न्तीम्। इष॑म्। अ॒श्या॒म॒। व॒स॒वः॒। शसा॑। गोः। सा। नः॒। सु॒ऽदानुः॑। मृ॒ळय॑न्ती। दे॒वी। प्रति॑। द्रव॑न्ती। सु॒वि॒ताय॑। ग॒म्याः॒ ॥१८॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:41» Mantra:18 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देवाः) धार्मिक विद्वान् जनो ! जो (सुदानुः) उत्तम दान से युक्त (मृळयन्ती) सुख देती (प्रति द्रवन्ती) जानती वा चलती हुई (देवी) विद्यायुक्त स्त्री (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिये (वः) आप लोगों को प्राप्त होती है (ताम्) उसको (ऊर्जयन्तीम्) तथा पराक्रम आदि के दान से वृद्धि कराती हुई (सुमतिम्) श्रेष्ठ बुद्धि को और (इषम्) अन्न को हम लोग (अश्याम) भोगें। हे (वसवः) उत्तम गुणों में निवास किये हुए जनो ! जो (गोः) पृथिवी के मध्य में (शसा) प्रशंसा के साथ वर्त्तमान है (सा) वह (नः) हम लोगों को प्राप्त हो। और हे विद्यायुक्त स्त्री ! आप इन जनों के (प्रति) प्रति (गम्याः) प्राप्त हूजिये ॥१८॥
Connotation: - मनुष्य सदा उत्तम प्रकार घृत आदि के संस्कार से युक्त बुद्धि और बल के बढानेवाले अन्न का सदा भोग करें, जिससे बुद्धि यश और धन बढ़े ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे देवा या सुदानुर्मृळयन्ती प्रति द्रवन्ती देवी सुविताय वो याति तामूर्जयन्तीं सुमतिमिषं च वयमश्याम। हे वसवो ! या गोः शसा सह वर्त्तते सा नोऽस्मान् प्राप्नोतु। हे विदुषि स्त्रि ! त्वमेतान् प्रति गम्याः ॥१८॥

Word-Meaning: - (ताम्) (वः) युष्मान् (देवाः) धार्मिका विद्वांसः (सुमतिम्) श्रेष्ठां प्रज्ञाम् (ऊर्जयन्तीम्) पराक्रमादिदानेनोन्नयन्तीम् (इषम्) अन्नम् (अश्याम) भुञ्जीमहि (वसवः) शुभगुणेषु कृतनिवासाः (शसा) प्रशंसया (गोः) पृथिव्या मध्ये (सा) (नः) अस्मान् (सुदानुः) उत्तमदाना (मृळयन्ती) सुखयन्ती (देवी) विदुषी (प्रति) (द्रवन्ती) जानन्ती गच्छन्ती वा (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (गम्याः) प्राप्नुयाः ॥१८॥
Connotation: - मनुष्याः सदा सुसंस्कृतं बुद्धिबलवर्धकमन्नं सदाऽदन्तु येन प्रज्ञा कीर्त्तिर्धनं च वर्धेत ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सदैव उत्तम प्रकारे घृत इत्यादीच्या संस्काराने युक्त बुद्धी व बल वाढविणाऱ्या अन्नाचा सदा भोग करावा. ज्यामुळे बुद्धी, यश व धन वाढेल ॥ १८ ॥