Go To Mantra

आ दैव्या॑नि॒ पार्थि॑वानि॒ जन्मा॒पश्चाच्छा॒ सुम॑खाय वोचम्। वर्ध॑न्तां॒ द्यावो॒ गिर॑श्च॒न्द्राग्रा॑ उ॒दा व॑र्धन्ताम॒भिषा॑ता॒ अर्णाः॑ ॥१४॥

English Transliteration

ā daivyāni pārthivāni janmāpaś cācchā sumakhāya vocam | vardhantāṁ dyāvo giraś candrāgrā udā vardhantām abhiṣātā arṇāḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

आ। दैव्या॑नि। पार्थि॑वानि। जन्म॑। अ॒पः। च॒। अच्छ॑। सुऽम॑खाय। वो॒च॒म्। वर्ध॑न्ताम्। द्यावः॑। गिरः॑। च॒न्द्रऽअ॑ग्राः। उ॒दा। व॒र्ध॒न्ता॒म्। अ॒भिऽसा॑ताः। अर्णाः॑ ॥१४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:41» Mantra:14 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:14


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! मैं जिन (दैव्यानि) श्रेष्ठ गुणों में हुए (पार्थिवानि) पृथिवीं में विदित (जन्म) जन्मों और (अपः) कर्म्मों को (च) भी (अच्छा) उत्तम प्रकार (आ, वोचम्) सब ओर से उपदेश करूँ जिस (उदा) जल से (अर्णाः) समुद्रों के सदृश हम लोगों की (चन्द्राग्राः) सुवर्ण वा आनन्द अग्रे अर्थात् परिणाम दशा में जिनके उन (अभिषाताः) चारों ओर से बँटी हुई (द्यावः) सत्य कामनाओं को और (गिरः) उत्तम प्रकार शिक्षित वाणियों की (वर्धन्ताम्) वृद्धि कीजिये जिससे (सुमखाय) शोभन यज्ञोंवाले के लिये प्राणियों की (वर्धन्ताम्) वृद्धि हो ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! आप लोग धर्म्मयुक्त कर्म्मों और श्रेष्ठ गुणों को ग्रहण करके अपनी कामनाओं और वाणी को शोभित करो, जैसे जल से नदियाँ और समुद्र बढ़ते हैं, वैसे ही धर्म्मयुक्त पुरुषार्थ से मनुष्य बढ़ते हैं ॥१४॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! अहं यानि दैव्यानि पार्थिवानि जन्मापश्चाच्छाऽऽवोचं येनोदा अर्णा इवाऽस्माकं चन्द्राग्रा अभिषाता द्यावो गिरश्च वर्धन्ताम् यतः सुमखाय प्राणिनो वर्धन्ताम् ॥१४॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (दैव्यानि) देवेषु दिव्येषु गुणेषु भवानि (पार्थिवानि) पृथिव्यां विदितानि (जन्म) जन्मानि (अपः) अपांसि कर्म्माणि (च) (अच्छा) सुष्ठु। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सुमखाय) शोभना मखा यज्ञा यस्य तस्मै (वोचम्) उपदिशेयम् (वर्धन्ताम्) (द्यावः) सत्याः कामाः (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (चन्द्राग्राः) चन्द्रं सुवर्णमानन्दो वाऽग्रे यासां ताः (उदा) उदकेन (वर्धन्ताम्) (अभिषाताः) अभितो विभक्ताः (अर्णाः) समुद्राः ॥१४॥
Connotation: - अत्र [वाचकलुप्तो]पमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यूयं धर्म्याणि कर्म्माणि शुभान् गुणांश्च गृहीत्वा स्वकीयाः कामना वाणीं चाऽलं कुरुत यथोदकेन नद्यः समुद्राश्च वर्धन्ते तथैव धर्म्मयुक्तेन पुरुषार्थेन मनुष्या वर्धन्ते ॥१४॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! तुम्ही धर्मयुक्त कर्म व श्रेष्ठ गुण ग्रहण करून आपल्या कामना व वाणी अलंकृत करा. जशा जलाने नद्या व समुद्र परिपूर्ण होतात तसे धर्मयुक्त पुरुषार्थाने माणसांची वृद्धी होते. ॥ १४ ॥