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यत्त्वा॑ सूर्य॒ स्व॑र्भानु॒स्तम॒सावि॑ध्यदासु॒रः। अक्षे॑त्रवि॒द्यथा॑ मु॒ग्धो भुव॑नान्यदीधयुः ॥५॥

English Transliteration

yat tvā sūrya svarbhānus tamasāvidhyad āsuraḥ | akṣetravid yathā mugdho bhuvanāny adīdhayuḥ ||

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Pad Path

यत्। त्वा॒। सू॒र्य॒। स्वः॑ऽभानुः। तम॑सा। अवि॑ध्यत्। आ॒सु॒रः। अक्षेत्र॑ऽवित्। यथा॑। मु॒ग्धः। भुव॑नानि। अ॒दी॒ध॒युः॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:40» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्य्यविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सूर्य्य) सूर्य्य के सदृश वर्तमान ! (यथा) जैसे (अक्षेत्रवित्) क्षेत्र अर्थात् रेखागणित को नहीं जाननेवाला (मुग्धः) मूर्ख कुछ भी नहीं कर सकता है, वैसे (यत्) जो (स्वर्भानुः) सूर्य्य से प्रकाशित होनेवाला बिजुलीरूप (आसुरः) जिसका प्रकट रूप नहीं वह (तमसा) रात्रि के अन्धकार से (अविध्यत्) युक्त होता है, जिस सूर्य्य से (भुवनानि) लोक (अदीधयुः) देखे जाते हैं, उसके जाननेवाले (त्वा) आपका हम लोग आश्रयण करें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे बिजुली गुप्त हुई अन्धकार में नहीं प्रकाशित होती है, वैसे ही विद्यारहित मूर्खजन का आत्मा नहीं प्रकाशित होता है और जैसे सूर्य्य के प्रकाश से सम्पूर्ण लोक प्रकाशित होते हैं, वैसे ही विद्वान् का आत्मा सम्पूर्ण सत्य और असत्य व्यवहारों को प्रकाशित करता है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्य्यविषयमाह ॥

Anvay:

हे सूर्य्य ! यथाऽक्षेत्रविन्मुग्धः किमपि कर्त्तुं न शक्नोति तथा यद्यः स्वर्भानुरासुरस्तमसाविध्यद् येन सूर्य्येण भुवनान्यदीधयुस्तं विदन्तं त्वा वयमाश्रयेम ॥५॥

Word-Meaning: - (यत्) यः (त्वा) त्वाम् (सूर्य्य) सूर्य्य इव वर्त्तमान (स्वर्भानुः) यः स्वरादित्यं भाति स विद्युद्रूपः (तमसा) रात्र्यन्धकारेण (अविध्यत्) युक्तो भवति (आसुरः) अनुद्भूतरूपः (अक्षेत्रवित्) यः क्षेत्रं रेखागणितं न वेत्ति (यथा) (मुग्धः) मूढः (भुवनानि) लोकान् (अदीधयुः) दृश्यन्ते। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम् ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा विद्युद् गुप्ता सत्यन्धकारे न प्रकाशते तथैवाऽविदुषो मूढस्यात्मा न प्रदीप्यते यथा सूर्य्यप्रकाशेन सर्वे लोकाः प्रकाश्यन्ते तथैव विदुष आत्मा सर्वान्त्सत्याऽसत्यव्यवहारान् प्रकाशयति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जशी गुप्त विद्युत अंधकारात प्रकाशित होत नाही तसाच विद्यारहित मूर्ख लोकांचा आत्मा प्रकाशित होत नाही. जसे सूर्याच्या प्रकाशाने संपूर्ण लोक (गोल) प्रकाशित होतात. तसा विद्वानाचा आत्मा संपूर्ण सत्य व असत्य व्यवहार प्रकट करतो. ॥ ५ ॥