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जु॒षस्वा॑ग्न॒ इळ॑या स॒जोषा॒ यत॑मानो र॒श्मिभिः॒ सूर्य॑स्य। जु॒षस्व॑ नः स॒मिधं॑ जातवेद॒ आ च॑ दे॒वान्ह॑वि॒रद्या॑य वक्षि ॥४॥

English Transliteration

juṣasvāgna iḻayā sajoṣā yatamāno raśmibhiḥ sūryasya | juṣasva naḥ samidhaṁ jātaveda ā ca devān haviradyāya vakṣi ||

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Pad Path

जु॒षस्व॑। अ॒ग्ने॒। इळ॑या। स॒ऽजोषाः॑। यत॑मानः। र॒श्मिऽभिः॑। सूर्य॑स्य। जु॒षस्व॑। नः। स॒म्ऽइध॑म्। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। आ। च॒। दे॒वान्। ह॒विः॒ऽअद्या॑य। व॒क्षि॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:4» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (जातवेदः) ज्ञान की उत्पत्ति से विशिष्ट (अग्ने) दुष्टों के नाश करनेवाले (यतमानः) प्रयत्न करते हुए (सजोषाः) तुल्य प्रीति सेवन करनेवाले आप (सूर्य्यस्य) सूर्य्य की (रश्मिभिः) किरणों के सदृश (इळया) प्रशंसित वाणी से (नः) हम लोगों के (समिधम्) काष्ठ के तुल्य शत्रु की (जुषस्व) सेवा करो और (हविरद्याय) खाने योग्य पदार्थ के लिये (देवान्) विद्वानों को (आ, वक्षि) प्राप्त कराते अर्थात् पहुँचाते हो उनकी (च) और (जुषस्व) सेवा करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य के प्रकाश से सब जीवों के करने योग्य कर्म्म सिद्ध होते हैं, वैसे ही यथार्थवक्ता पुरुषों से राजा के सर्व न्याययुक्त प्रजापालन आदि कर्म्म होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे जातवेदोऽग्ने ! यतमानः सजोषास्त्वं सूर्य्यस्य रश्मिभिरिवेळया नः समिधमिव शत्रुं जुषस्व हविरद्याय देवानां वक्षि तांश्च जुषस्व ॥४॥

Word-Meaning: - (जुषस्व) सेवस्व (अग्ने) दुष्टप्रदाहक (इळया) प्रशंसितया वाचा (सजोषाः) समानप्रीतिसेवनः (यतमानः) प्रयतमानः (रश्मिभिः) (सूर्य्यस्य) (जुषस्व) (नः) अस्माकम् (समिधम्) काष्ठमिव शत्रुम् (जातवेदः) उत्पन्नप्रज्ञान (आ) (च) (देवान्) विदुषः (हविरद्याय) हविश्चाद्यमत्तव्यं च तस्मै (वक्षि) वहसि प्रापयसि ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्या ! यथाऽऽदित्यस्य प्रकाशेन सर्वेषां जीवानां कर्त्तव्यानि कर्म्माणि सिध्यन्ति तथैवाप्तैः पुरुषैः राज्ञः सर्वाणि न्याययुक्तानि प्रजापालनादीनि कर्माणि भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे सूर्याच्या प्रकाशामुळे सर्व जीव कर्म करतात तसे आप्त पुरुषाकडून राजाचे न्याययुक्त प्रजापालनाचे कार्य घडून येते. ॥ ४ ॥