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वि॒शां क॒विं वि॒श्पतिं॒ मानु॑षीणां॒ शुचिं॑ पाव॒कं घृ॒तपृ॑ष्ठम॒ग्निम्। नि होता॑रं विश्व॒विदं॑ दधिध्वे॒ स दे॒वेषु॑ वनते॒ वार्या॑णि ॥३॥

English Transliteration

viśāṁ kaviṁ viśpatim mānuṣīṇāṁ śucim pāvakaṁ ghṛtapṛṣṭham agnim | ni hotāraṁ viśvavidaṁ dadhidhve sa deveṣu vanate vāryāṇi ||

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Pad Path

वि॒शाम्। क॒विम्। वि॒श्पति॑म्। मानु॑षीणाम्। शुचि॑म्। पा॒व॒कम्। घृ॒तऽपृ॑ष्ठम्। अ॒ग्निम्। नि। होता॑रम्। वि॒श्व॒ऽविद॑म्। द॒धि॒ध्वे॒। सः। दे॒वेषु॑। व॒न॒ते॒। वार्या॑णि ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:4» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:18» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब प्रजाविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! आप लोग (घृतपृष्ठम्) जल और घृत आधार में जिसके उस (पावकम्) पवित्र करनेवाले (अग्निम्) अग्नि और (विश्वविदम्) संसार को जाननेवाले के सदृश (मानुषीणाम्) मनुष्यसम्बन्धिनी (विशाम्) प्रजाओं के (विश्पतिम्) प्रजापालक (शुचिम्) पवित्र और (होतारम्) देनेवाले (कविम्) मेधावी जिस राजा को आप लोग (नि, दधिध्वे) अच्छे स्वीकार करें (सः) वह (देवेषु) विद्वानों वा श्रेष्ठ पदार्थों में (वार्य्याणि) स्वीकार करने योग्यों का (वनते) सेवन करता है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो अग्नि के सदृश प्रतापी, जगदीश्वर के सदृश न्यायकारी, विद्वान् और उत्तम लक्षणोंवाला राजा होता है, वही चक्रवर्त्ती राजा होने योग्य है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रजाविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं घृतपृष्ठं पावकमग्निमिव विश्वविदमिव मानुषीणां विशां विश्पतिं शुचिं होतारं कविं यं राजानं यूयं नि दधिध्वे स देवेषु वार्य्याणि वनते ॥३॥

Word-Meaning: - (विशाम्) प्रजानाम् (कविम्) मेधाविनम् (विश्पतिम्) प्रजापालकम् (मानुषीणाम्) मनुष्यसम्बन्धिनीनाम् (शुचिम्) पवित्रम् (पावकम्) पवित्रकरं वह्निम् (घृतपृष्ठम्) घृतमुदकमाज्यं पृष्ठ आधारे यस्य तम् (अग्निम्) वह्निम् (नि) (होतारम्) दातारम् (विश्वविदम्) यो विश्वं वेत्ति तम् (दधिध्वे) (सः) (देवेषु) विद्वत्सु दिव्येषु पदार्थेषु वा (वनते) सम्भजति (वार्य्याणि) वरितुं स्वीकर्त्तुमर्हाणि ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यो हि पावकवत्प्रतापी जगदीश्वरवन्न्यायकारी विद्वाञ्छुभलक्षणो राजा भवति स एव सम्राट् भवितुमर्हति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो अग्नीप्रमाणे पराक्रमी, जगदीश्वराप्रमाणे न्यायी, विद्वान व उत्तम लक्षणांनी युक्त असतो तोच चक्रवर्ती राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ ३ ॥