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नू त॑ आ॒भिर॒भिष्टि॑भि॒स्तव॒ शर्म॑ञ्छतक्रतो। इन्द्र॒ स्याम॑ सुगो॒पाः शूर॒ स्याम॑ सुगो॒पाः ॥५॥

English Transliteration

nū ta ābhir abhiṣṭibhis tava śarmañ chatakrato | indra syāma sugopāḥ śūra syāma sugopāḥ ||

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Pad Path

नु। ते॒। आ॒भिः। अ॒भिष्टि॑ऽभिः। तव॑। शर्म॑न्। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। इन्द्र॑। स्याम॑। सु॒ऽगो॒पाः। शूर॑। स्याम॑। सु॒ऽगो॒पाः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:38» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शतक्रतो) अत्यन्त बुद्धिवाले (इन्द्र) राजन् ! (ते) आपकी (आभिः) इन वर्त्तमान (अभिष्टिभिः) इष्ट पदार्थों की इच्छाओं से (तव) आपके (शर्मन्) गृह में हम लोग (सुगोपाः) उत्तम प्रकार रक्षा करनेवाले (स्याम) होवें। और हे (शूर) भय से रहित राजन् ! आपके राज्य वा संग्राम में हम लोग (सुगोपाः) यथावत् प्रजा के पालन करनेवाले (नू) निश्चय (स्याम) होवें ॥५॥
Connotation: - हे राजन् ! हम लोग सत्य प्रतिज्ञा और प्रीति से आपके गृह, शरीर, राज्य और सेना के सदा ही रक्षक होके कृतकृत्य होवें ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र विद्वान् राजा और प्रजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अड़तीसवाँ सूक्त और नववाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे शतक्रतो इन्द्र ! त आभिरभिष्टिभिस्तव शर्मन् वयं सुगोपाः स्याम। हे शूर ! तव राज्ये सङ्ग्रामे वा वयं सुगोपा नू स्याम ॥५॥

Word-Meaning: - (नू) (ते) तव (आभिः) वर्त्तमानाभिः (अभिष्टिभिः) इष्टेच्छाभिः (तव) (शर्मन्) शर्म्मणि गृहे (शतक्रतो) अतुलप्रज्ञ (इन्द्र) राजन् (स्याम) (सुगोपाः) सुष्ठु रक्षकाः (शूर) निर्भय (स्याम) (सुगोपाः) यथावत्प्रजापालकाः ॥५॥
Connotation: - हे राजन् ! वयं सत्यप्रतिज्ञया प्रीत्या च तव गृहस्य शरीरस्य राज्यस्य सेनायाश्च सदैव रक्षका भूत्वा कृतकृत्या भवेमेति ॥५॥ अत्रेन्द्रविद्वद्राजप्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टात्रिंशत्तमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थर् - हे राजा! आम्ही सत्य प्रतिज्ञा व प्रीतीने तुझे घर, शरीर, राज्य व सेना यांचे रक्षक बनून कृतकृत्य व्हावे. ॥ ५ ॥