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ए॒ष ग्रावे॑व जरि॒ता त॑ इ॒न्द्रेय॑र्ति॒ वाचं॑ बृ॒हदा॑शुषा॒णः। प्र स॒व्येन॑ मघव॒न्यंसि॑ रा॒यः प्र द॑क्षि॒णिद्ध॑रिवो॒ मा वि वे॑नः ॥४॥

English Transliteration

eṣa grāveva jaritā ta indreyarti vācam bṛhad āśuṣāṇaḥ | pra savyena maghavan yaṁsi rāyaḥ pra dakṣiṇid dharivo mā vi venaḥ ||

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Pad Path

ए॒षः। ग्रावा॑ऽइव। ज॒रि॒ता। ते॒। इ॒न्द्र॒। इय॑र्ति। वाच॑म्। बृ॒हत्। आ॒शु॒षा॒णः। प्र। स॒व्येन॑। म॒घ॒ऽव॒न्। यंसि॑। रा॒यः। प्र। द॒क्षि॒णित्। ह॒रि॒ऽवः॒। मा। वि। वे॒नः॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:36» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हरिवः) उत्तम मन्त्रियों से और (मघवन्) धन से युक्त (इन्द्र) शत्रुओं के नाश करनेवाले राजन् ! जो (ते) आपका (एषः) यह (जरिता) सम्पूर्ण विद्याओं की प्रशंसा करनेवाला (ग्रावेव) मेघ के सदृश (वाचम्) उत्तम शिक्षायुक्त वाणी को (इयर्त्ति) प्राप्त होता है, वह (बृहत्) बड़े को (आशुषाणः) व्याप्त होता हुआ (सव्येन) वाम ओर से (प्र, दक्षिणित्) उत्तम प्रकार दहिने भाग से चलनेवाला (रायः) धन के (प्र, यंसि) उत्तम प्रकार प्राप्त होने वा नियम करनेवाले हो वह आप (वि) विशेष करके (वेनः) कामना करनेवाले (मा) न हूजिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो बड़े विद्वान् जन वाणी को ग्रहण कर वा ग्रहण कराय के इन्द्रियों के निग्रह करनेवाले होते हैं, वे निष्फल मनोरथवाले नहीं होते हैं, किन्तु सत्यकाम और असत्य के द्वेषी निरन्तर वर्त्तमान हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे हरिवो मघवन्निन्द्र ! यस्त एष जरिता ग्रावेव वाचमियर्त्ति स बृहदाशुषाणः सव्येन प्र दक्षिणित् सन् रायः प्र यंसि स त्वं वि वेनो मा भव ॥४॥

Word-Meaning: - (एषः) (ग्रावेव) मेघ इव (जरिता) सकलविद्याप्रशंसकः (ते) तव (इन्द्र) शत्रुविदारक राजन् ! (इयर्त्ति) प्राप्नोति (वाचम्) सुशिक्षितां वाणीम् (बृहत्) महत् (आशुषाणः) व्याप्नुवन् सन् (प्र) (सव्येन) वामपार्श्वेन (मघवन्) धनाढ्य (यंसि) प्राप्नोषि नियच्छसि वा (रायः) धनस्य (प्र, दक्षिणित्) दक्षिणेन पार्श्वेनैति गच्छतीति (हरिवः) उत्तमाऽमात्ययुक्त (मा) (वि) विगतार्थे (वेनः) कामयमानः ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! ये महान्तो विद्वांसो वाचं गृहीत्वा ग्राहयित्वा संयतेन्द्रिया भवन्ति ते निष्कामा न भवन्ति, किन्तु सत्यकामा असत्यद्वेषिणः सततं वर्त्तन्ते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपामालंकार आहे. हे माणसांनो! जे महा विद्वान सुसंस्कृत वाणीचा स्वीकार करून इंद्रियांचा निग्रह करतात त्यांचे मनोरथ निष्फळ होत नाहीत, तर ते सत्यवादी व असत्यद्वेषी असतात. ॥ ४ ॥