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न प॒ञ्चभि॑र्द॒शभि॑र्वष्ट्या॒रभं॒ नासु॑न्वता सचते॒ पुष्य॑ता च॒न। जि॒नाति॒ वेद॑मु॒या हन्ति॑ वा॒ धुनि॒रा दे॑व॒युं भ॑जति॒ गोम॑ति व्र॒जे ॥५॥

English Transliteration

na pañcabhir daśabhir vaṣṭy ārabhaṁ nāsunvatā sacate puṣyatā cana | jināti ved amuyā hanti vā dhunir ā devayum bhajati gomati vraje ||

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Pad Path

न। पञ्चऽभिः॑। द॒शऽभिः॑। व॒ष्टि॒। आ॒ऽरभ॑म्। न। असु॑न्वता। स॒च॒ते॒। पुष्य॑ता। च॒न। जि॒नाति॑। वा॒। इ॒त्। अ॒मु॒या। हन्ति॑। वा॒। धुनिः॒। आ। दे॒व॒ऽयुम्। भ॒ज॒ति॒। गोऽम॑ति। व्र॒जे ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:34» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (असुन्वता) नहीं पुरुषार्थ करनेवाले से (पञ्चभिः) पाँच इन्द्रियों और (दशभिः) दश प्राणों से (आरभम्) आरम्भ करने की (न) नहीं (वष्टि) कामना करता वह (पुष्यता) पुष्टि को करनेवाले से (न) नहीं (सचते) सम्बन्धित होता (जिनाति, चन) और अपमान को प्राप्त होता है (वा) वा (अमुया) इससे (हन्ति) नाश करता है (वा) वा जो (धुनिः) कंपनेवाला (गोमति) बहुत गौंवे विद्यमान जिसमें उस (व्रजे) गौवों के ठहरने के स्थान में (देवयुम्) विद्वानों की कामना करनेवाले का (आ) सब प्रकार से (भजति) आदर करता और वह सब (इत्) ही सुख का भोग करता है ॥५॥
Connotation: - जो आलस्ययुक्त जन पुरुषार्थ को नहीं करते हैं, वे अभीष्ट सिद्धि को नहीं प्राप्त होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

योऽसुन्वता पञ्चभिर्दशभिरारभं न वष्टि स पुष्यता न सचते जिनाति चन वामुया हन्ति वा यो धुनिर्गोमति व्रजे देवयुमा भजति स सर्वमित् सुखमश्नुते ॥५॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (पञ्चभिः) इन्द्रियैः (दशभिः) प्राणैः (वष्टि) कामयते (आरभम्) आरब्धुम् (न) निषेधे (असुन्वता) अपुरुषार्थिना (सचते) सम्बध्नाति (पुष्यता) पुष्टिमाचरता (चन) अपि (जिनाति) अभिभवति (वा) (इत्) (अमुया) (हन्ति) (वा) (धुनिः) कम्पकः (आ) समन्तात् (देवयुम्) देवान् कामयमानम् (भजति) (गोमति) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यस्मिँस्तस्मिन् (व्रजे) गवां स्थित्यधिकरणे ॥५॥
Connotation: - येऽलसा पुरुषार्थं न कुर्वन्ति तेऽभीष्टसिद्धिं न लभन्ते ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे आळशी लोक पुरुषार्थ करत नाहीत त्यांना अभीष्ट सिद्धी प्राप्त होत नाही. ॥ ५ ॥