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व॒यं ते त॑ इन्द्र॒ ये च॒ नरः॒ शर्धो॑ जज्ञा॒ना या॒ताश्च॒ रथाः॑। आस्माञ्ज॑गम्यादहिशुष्म॒ सत्वा॒ भगो॒ न हव्यः॑ प्रभृ॒थेषु॒ चारुः॑ ॥५॥

English Transliteration

vayaṁ te ta indra ye ca naraḥ śardho jajñānā yātāś ca rathāḥ | āsmāñ jagamyād ahiśuṣma satvā bhago na havyaḥ prabhṛtheṣu cāruḥ ||

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Pad Path

व॒यम्। ते। ते॒। इ॒न्द्र॒। ये। च॒। नरः॑। शर्धः॑। ज॒ज्ञा॒नाः। या॒ताः। च॒। रथाः॑। आ। अ॒स्मान्। ज॒ग॒म्या॒त्। अ॒हि॒ऽशु॒ष्म॒। सत्वा॑। भगः॑। न। हव्यः॑। प्र॒ऽभृ॒थेषु॑। चारुः॑ ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:33» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अहिशुष्म) मेघ को सुखानेवाले सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान (इन्द्र) राजन् ! (ये) जो (ते) आपके (शर्धः) बल और (जज्ञानाः) उत्पन्न तथा (याताः) प्राप्त हुए (नरः) नायक (रथाः, च) और वाहन आदि हैं (ते) वे (अस्मान्) हम लोगों को प्राप्त होवें और जो (भगः) ऐश्वर्य्य के योग के (न) सदृश (प्रभृथेषु) अत्यन्त धारण करने योग्यों में (हव्यः) ग्रहण करने योग्य (चारुः) सुन्दर (सत्वा) स्थिर होनेवाले आप हम लोगों को (आ, जगम्यात्) यथावत् प्राप्त होवें, उन आप को (वयम्) हम लोग (च) भी प्राप्त होवें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजन् ! जब हम लोग आपके और आप हम लोगों के मित्र होवें, तभी हम लोगों का ऐश्वर्य्य बड़े और जैसे ऐश्वर्य्य सब का प्रिय है, वैसे ही धर्म्म, प्रिय =प्रिय धर्म सदा रक्षा करने योग्य है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अहिशुष्मेन्द्र ! ये ते शर्धो जज्ञाना याता नरो रथाश्च सन्ति तेऽस्मान् प्राप्नुवन्तु। यो भगो न प्रभृथेषु हव्यश्चारुः सत्वा भवानस्माना जगम्यात्तं भवन्तं वयं च प्राप्नुयाम ॥५॥

Word-Meaning: - (वयम्) (ते) (ते) तव (इन्द्र) राजन् (ये) (च) (नरः) नायकाः (शर्धः) बलानि (जज्ञानाः) जायमानाः (याताः) ये प्राप्तास्ते (च) (रथाः) यानादयः (आ) (अस्मान्) (जगम्यात्) यथावत्प्राप्नुयात् (अहिशुष्म) योऽहिं मेघं शोषयति स सूर्य्यस्तद्वद्वर्त्तमान (सत्वा) यः सीदति (भगः) ऐश्वर्य्ययोगः (न) इव (हव्यः) आदातुं योग्यः (प्रभृथेषु) प्रकर्षेण धर्त्तव्येषु (चारुः) सुन्दरः ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे राजन् ! यदा वयं तव त्वमस्माकं मित्रं भवेस्तदैवास्माकमैश्वर्य्यं प्रवर्धेत यथैश्वर्य्यं सर्वेषां प्रियं वर्त्तते तथैव धर्मः प्रियः सदा रक्षणीयः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा! जेव्हा आपण एकमेकांचे मित्र होऊ तेव्हा आमचे ऐश्वर्य वाढेल. जसे ऐश्वर्य सर्वांना प्रिय असते तसाच धर्म प्रिय व सदैव रक्षणीय असतो. ॥ ५ ॥