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पु॒रू यत्त॑ इन्द्र॒ सन्त्यु॒क्था गवे॑ च॒कर्थो॒र्वरा॑सु॒ युध्य॑न्। त॒त॒क्षे सूर्या॑य चि॒दोक॑सि॒ स्वे वृषा॑ स॒मत्सु॑ दा॒सस्य॒ नाम॑ चित् ॥४॥

English Transliteration

purū yat ta indra santy ukthā gave cakarthorvarāsu yudhyan | tatakṣe sūryāya cid okasi sve vṛṣā samatsu dāsasya nāma cit ||

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Pad Path

पु॒रु। यत्। ते॒। इ॒न्द्र॒। सन्ति॑। उक्था॒। गवे॑। च॒कर्थ॑। उ॒र्वरा॑सु। युध्य॑न्। त॒त॒क्षे। सूर्या॑य। चि॒त्। ओक॑सि। स्वे। वृषा॑। स॒मत्ऽसु॑। दा॒सस्य॑। नाम॑। चि॒त् ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:33» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर इन्द्र के गुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त (वृषा) बलिष्ठ होते हुए आप (ते) आपके (यत्) जो (पुरु) बहुत (उक्था) प्रशंसित कर्म्म (गवे) गौ आदि पशुओं के हित के लिये (सन्ति) हैं उनको (उर्वरासु) भूमियों में और (समत्सु) सङ्ग्रामों में (युध्यन्) युद्ध करते हुए (चकर्थ) करें और शत्रुओं को (ततक्षे) सूक्ष्म अर्थात् निर्बल करते हो और (सूर्य्याय) सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान के लिये (चित्) भी (स्वे) अपने (ओकसि) गृह में (दासस्य) दास के (चित्) निश्चित (नाम) नाम को प्रकट कीजिये ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! जितनी उत्तम सामग्रियाँ होवें, उनको सेना में युद्ध के लिये स्थापित कीजिये और जो गृह के लिये वस्तु होवें, उनको गृह में स्थापित कीजिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरिन्द्रगुणानाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! वृषा त्वं ते यत्पुरूक्था गवे सन्ति तार्न्युवरासु समत्सु युध्यन् सँश्चकर्थ शत्रूँस्ततक्षे सूर्य्याय चिदिव स्व ओकसि दासस्य चिन्नाम प्रकटय ॥४॥

Word-Meaning: - (पुरु) बहूनि (यत्) यानि (ते) तव (इन्द्र) विद्यैश्वर्य्ययुक्त (सन्ति) (उक्था) प्रशंसितानि कर्म्माणि (गवे) गवादिपशुहिताय (चकर्थ) कुर्याः (उर्वरासु) भूमिषु (युध्यन्) (ततक्षे) तनूकरोषि (सूर्य्याय) सूर्यायेव वर्त्तमानाय (चित्) (ओकसि) गृहे (स्वे) स्वकीये (वृषा) बलिष्ठ सन् (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (दासस्य) (नाम) संज्ञाम् (चित्) अपि ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! यावत्य उत्तमाः सामग्र्यः स्युस्ताः सेनायां युद्धाय स्थापय यानि च गृहार्थानि वस्तूनि भवेयुस्तानि गृहे निधेहि ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! जितकी उत्तम सामग्री असेल ती सेनेत युद्धासाठी वापर व जे गृहोपयोगी पदार्थ असतील त्यांना घरात ठेव. ॥ ४ ॥