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वृष्णे॒ यत्ते॒ वृष॑णो अ॒र्कमर्चा॒निन्द्र॒ ग्रावा॑णो॒ अदि॑तिः स॒जोषाः॑। अ॒न॒श्वासो॒ ये प॒वयो॑ऽर॒था इन्द्रे॑षिता अ॒भ्यव॑र्तन्त॒ दस्यू॑न् ॥५॥

English Transliteration

vṛṣṇe yat te vṛṣaṇo arkam arcān indra grāvāṇo aditiḥ sajoṣāḥ | anaśvāso ye pavayo rathā indreṣitā abhy avartanta dasyūn ||

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Pad Path

वृष्णे॑। यत्। ते॒। वृष॑णः। अ॒र्कम्। अर्चा॑न्। इन्द्र॑। ग्रावा॑णः। अदि॑तिः। स॒ऽजोषाः॑। अ॒न॒श्वासः॑। ये। प॒वयः॑। अ॒र॒थाः। इन्द्र॑ऽइषिताः। अ॒भि। अव॑र्तन्त। दस्यू॑न् ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:31» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:29» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) दुष्ट दलों के नाश करनेवाले राजन् ! (यत्) जिन (वृष्णे) वृष्टि करनेवाले (ते) आपके लिये (अर्कम्) सत्कार करने योग्य का प्रजाजन (अर्चान्) सत्कार करें वह जैसे (वृषणः) वर्षा के निमित्त (ग्रावाणः) मेघ और (सजोषाः) समान प्रीति का सेवन करनेवाला और (अदितिः) अन्तरिक्ष वर्त्तमान हैं, वैसे हूजिये और (ये) जो (अरथाः) वाहनों से रहित (अनश्वासः) घोड़ों से रहित (इन्द्रेषिताः) स्वामी से प्रेरणा किये गये (पवयः) चक्र (दस्यून्) दुष्ट चोरों के (अभि) सन्मुख (अवर्त्तन्त) वर्त्तमान हैं, उनका आप निरन्तर सत्कार कीजिये ॥५॥
Connotation: - जो राजाजन मेघ के सदृश सुख वर्षाने और आकाश के सदृश नहीं हिलनेवाले, अग्नि आदिकों के वाहनों को रच के इधर-उधर भ्रमण करके दुष्ट चोरों का नाश करके प्रजाओं को प्रसन्न करें, वे भाग्यशाली होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र राजन् ! यद्यस्मै वृष्णे तेऽर्कं प्रजाजना अर्चान् स यथा वृषणो ग्रावाणः सजोषा अदितिश्च वर्त्तन्ते तथा भव येऽरथा अनश्वास इन्द्रेषिताः पवयो दस्यूनभ्यवर्त्तन्त तांस्त्वं सततं सत्कुर्याः ॥५॥

Word-Meaning: - (वृष्णे) वृष्टिकराय (यत्) यस्मै (ते) तुभ्यम् (वृषणः) वृष्टिनिमित्ताः (अर्कम्) पूजनीयम् (अर्चान्) पूजयन्तु (इन्द्र) दुष्टदलहर (ग्रावाणः) मेघाः (अदितिः) अन्तरिक्षम् (सजोषाः) समानप्रीतिसेवी (अनश्वासः) अविद्यमाना अश्वा येषु ते (ये) (पवयः) चक्राणि (अरथाः) अविद्यमाना रथा येषान्ते (इन्द्रेषिताः) इन्द्रेण स्वामिना प्रेरिताः (अभि) (अवर्त्तन्त) वर्त्तन्ते (दस्यून्) दुष्टाञ्चोरान् ॥५॥
Connotation: - ये राजानो मेघवत्सुखवर्षका आकाशवदक्षोभा अग्न्यादियानानि रचयित्वेतस्ततो भ्रमणं विधाय दस्यून् हत्वा प्रजाः प्रसादयेयुस्ते भाग्यशालिनो जायन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे राजे मेघाप्रमाणे सुखाचा वर्षाव व आकाशाप्रमाणे स्थिर असतात. अग्नी इत्यादीद्वारे वाहन निर्माण करून इकडे तिकडे भ्रमण करतात व दुष्ट चोरांचा नाश करतात तेच प्रजेला प्रसन्न करून भाग्यशाली बनतात. ॥ ५ ॥