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ये चा॒कन॑न्त चा॒कन॑न्त॒ नू ते मर्ता॑ अमृत॒ मो ते अंह॒ आर॑न्। वा॒व॒न्धि यज्यूँ॑रु॒त तेषु॑ धे॒ह्योजो॒ जने॑षु॒ येषु॑ ते॒ स्याम॑ ॥१३॥

English Transliteration

ye cākananta cākananta nū te martā amṛta mo te aṁha āran | vāvandhi yajyūm̐r uta teṣu dhehy ojo janeṣu yeṣu te syāma ||

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Pad Path

ये। चा॒कन॑न्त। चा॒कन॑न्त। नु। ते। मर्ताः॑। अ॒मृत॒। मो॒ इति॑। ते। अंहः॑। आ। अ॒र॒न्। व॒व॒न्धि। यज्यू॑न्। उ॒त। तेषु॑। धेहि॒। ओजः॑। जने॑षु। येषु॑। ते॒। स्याम॑ ॥१३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:31» Mantra:13 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:31» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अमृत) आत्मस्वरूप से मरणधर्म्मरहित विद्वान् ! (ये) जो विद्या, विनय और सत्य आचरणों की (चाकनन्त) कामना करते हैं तथा अन्यों के लिये भी (चाकनन्त) कामना करते हैं, (ते) वे (मर्त्ताः) मनुष्य सत्य की (नू) शीघ्र कामना करते हैं और (ते) वे (अंहः) अपराध को (मो) नहीं (आ, अरन्) सब प्रकार से प्राप्त हों और वे (उत) ही (यज्यून्) सत्यभाषण आदि यज्ञ के अनुष्ठान करनेवाले जनों को (वावन्धि) बन्धनयुक्त करते हैं तथा (येषु) जिन (जनेषु) सत्य आचरण करनेवाले मनुष्यों में हम लोग (ते) आपके मित्र (स्याम) होवें (तेषु) उन हम लोगों में आप (ओजः) पराक्रम को (धेहि) धारण कीजिये ॥१३॥
Connotation: - हे विद्वान् जनो ! जो जन विद्या, सत्य आचरण तथा परोपकार की और अधर्म्म आचरण के त्याग की कामना करके सब के उपकार की इच्छा करें, वे धन्यवादयुक्त होवें और हम लोग भी ऐसे होवें, ऐसी इच्छा करें ॥१३॥ इस सूक्त में इन्द्र और शिल्पविद्या के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह इकतीसवाँ सूक्त और इकतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अमृत विद्वन् ! ये विद्याविनयसत्याचाराश्चाकनन्तान्यार्थमपि चाकनन्त ते मर्त्ताः सत्यं नू चाकनन्त तेंऽहो मो आरन् त उत यज्यून् वावन्धि येषु जनेषु वयं ते तव सखायः स्याम तेष्वस्मासु त्वमोजो धेहि ॥१३॥

Word-Meaning: - (ये) (चाकनन्त) कामयन्ते (चाकनन्त) (नू) सद्यः (ते) (मर्त्ताः) मनुष्याः (अमृत) आत्मस्वरूपेण मरणधर्मरहित (मो) (ते) (अंहः) अपराधम् (आ) (अरन्) समन्तात् प्राप्नुयुः (वावन्धि) बध्नन्ति (यज्यून्) सत्यभाषणादियज्ञानुष्ठातॄन् (उत) अपि (तेषु) (धेहि) (ओजः) पराक्रमम् (जनेषु) सत्याचरणेषु मनुष्येषु (येषु) (ते) तव (स्याम) भवेम ॥१३॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! ये विद्यासत्याचरणपरोपकारानधर्म्माचरणराहित्यं च कामयित्वा सर्वोपकारमिच्छेयुस्ते धन्याः सन्तु वयमपीदृशाः स्यामेतीच्छामेति ॥१३॥ अत्रेन्द्रविद्वच्छिल्पगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकत्रिंशत्तमं सूक्तमेकत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो! जे लोक विद्या, सत्याचरण व परोपकार आणि अधर्माचा त्याग करून सर्वांच्या उपकाराची इच्छा ठेवतात ते धन्यवाद देण्यायोग्य असतात. आपणही त्यांच्याप्रमाणे व्हावे ही इच्छा बाळगावी. ॥ १३ ॥