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इन्द्रो॒ रथा॑य प्र॒वतं॑ कृणोति॒ यम॒ध्यस्था॑न्म॒घवा॑ वाज॒यन्त॑म्। यू॒थेव॑ प॒श्वो व्यु॑नोति गो॒पा अरि॑ष्टो याति प्रथ॒मः सिषा॑सन् ॥१॥

English Transliteration

indro rathāya pravataṁ kṛṇoti yam adhyasthān maghavā vājayantam | yūtheva paśvo vy unoti gopā ariṣṭo yāti prathamaḥ siṣāsan ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। रथा॑य। प्र॒ऽवत॑म्। कृ॒णो॒ति॒। यम्। अ॒धि॒ऽअस्था॑त्। म॒घऽवा॑। वा॒ज॒ऽयन्त॑म्। यू॒थाऽइ॑व। प॒श्वः। वि। उ॒नो॒ति॒। गो॒पाः। अरि॑ष्टः। या॒ति॒। प्र॒थ॒मः। सिसा॑सन् ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:31» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:29» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तेरह ऋचावाले इकतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रगुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (अरिष्टः) नहीं मारा गया (प्रथमः) प्रथम (सिषासन्) इच्छा करता हुआ (मघवा) अत्यन्त श्रेष्ठ धनरूप कारणयुक्त (इन्द्रः) सूर्य्य के सदृश सेना का ईश (गोपाः) गौओं का पालन करनेवाला (पश्वः) पशुओं के (यूथेव) समूहों के सदृश लोकों की (वि) विशेष करके (उनोति) प्रेरणा करता और (वाजयन्तम्) भूगोलों को चलाते हुए को (याति) जाता है और (यम्) जिस लोक का (अध्यस्थात्) अधिष्ठित होता, उससे (रथाय) वाहन के लिये (प्रवतम्) नीचे स्थल को (कृणोति) करता है, वैसे आप आचरण करिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं । जो राजा रथ आदि के चलने के लिये मार्गों को सुडौल बनाय के उन मार्गों से रथ आदि वाहनों पर चढ़ के तथा जाय और आय के पशुओं का पालन करनेवाला पशुओं को जैसे वैसे शत्रुओं को रोक के प्रजाओं का निरन्तर पालन करता है, वही सब प्रकार वृद्धि को प्राप्त होता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रगुणानाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या! यथाऽरिष्टः प्रथमः सिषासन् मघवेन्द्रो गोपाः पश्वो यूथेव लोकान् व्युनोति वाजयन्तं याति यं लोकमध्यस्थात् तेन रथाय प्रवतं कृणोति तथा भवानाचरतु ॥१॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) सूर्य्य इव सेनेशः (रथाय) (प्रवतम्) निम्नं स्थलम् (कृणोति) करोति (यम्) (अध्यस्थात्) अधितिष्ठति (मघवा) परमपूजितधननिमित्तः (वाजयन्तम्) भूगोलान् गमयन्तम् (यूथेव) समूहानिव (पश्वः) पशूनाम् (वि) विशेषेण (उनोति) प्रेरयति (गोपाः) गवां पालकः (अरिष्टः) अहिंसितः (याति) गच्छति (प्रथमः) (सिषासन्) इच्छन् ॥१॥
Connotation: - अत्र [उपमा]वाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यो राजा रथादिगमनाय मार्गान्निर्माय रथादीनि यानान्यारुह्य गत्वाऽऽगत्य पशुपालः पशूनिव शत्रून्निरोध्य प्रजाः सततं पालयति स एव सर्वतो वर्धते ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इन्द्र व शिल्पविद्येच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जो राजा रथाने जाण्याचा मार्ग निर्माण करून रथ इत्यादी यानात आरूढ होऊन गमनागमन करतो व पशूंचा पालक असतो तसेच शत्रूंना रोखून प्रजेचे निरंतर पालन करतो त्याचीच सर्व प्रकारे वृद्धी होते. ॥ १ ॥