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प॒रो यत्त्वं प॑र॒म आ॒जनि॑ष्ठाः परा॒वति॒ श्रुत्यं॒ नाम॒ बिभ्र॑त्। अत॑श्चि॒दिन्द्रा॑दभयन्त दे॒वा विश्वा॑ अ॒पो अ॑जयद्दा॒सप॑त्नीः ॥५॥

English Transliteration

paro yat tvam parama ājaniṣṭhāḥ parāvati śrutyaṁ nāma bibhrat | ataś cid indrād abhayanta devā viśvā apo ajayad dāsapatnīḥ ||

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Pad Path

प॒रः। यत्। त्वम्। प॒र॒मः। आ॒ऽजनि॑ष्ठाः। प॒रा॒ऽवति॑। श्रुत्य॑म्। नाम॑। बिभ्र॑त्। अतः॑। चि॒त्। इन्द्रा॑त्। अ॒भ॒य॒न्त॒। दे॒वाः। विश्वाः॑। अ॒पः। अ॒ज॒य॒त्। दा॒सऽप॑त्नीः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:30» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यत्) जो (त्वम्) आप (परः) उत्तम (परमः) अत्यन्त श्रेष्ठ (श्रुत्यम्) श्रवण में उत्पन्न (नाम) संज्ञा को (बिभ्रत्) धारण करते हुए (आजनिष्ठाः) सब प्रकार से प्रकट होते हो, वह जैसे (परावति) दूर देश में स्थित सूर्य्य (विश्वाः) सम्पूर्ण (दासपत्नीः) जल का देनेवाला मेघ जिनका पालनकर्त्ता ऐसे (अपः) जलों को (अजयत्) जीतता है और जैसे (देवाः) विद्वान् जन (इन्द्रात्) बिजुली से (अभयन्त) नहीं डरते हैं, वैसे वर्त्तमान होने पर (अतः) इससे (चित्) भी सुख की वृद्धि करिये ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे दूरस्थित भी सूर्य्य अपने प्रकाश से प्रसिद्ध होता है, वैसे ही दूर वर्त्तमान भी यथार्थवक्ता जन प्रकाशित यशवाले होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यत्त्वं परः परमः श्रुत्यं नाम बिभ्रत्सन्नाजनिष्ठाः स यथा परावति देशे स्थितः सूर्य्यो विश्वा दासपत्नीरपोऽजयद्यथा देवा इन्द्रादभयन्त तथा वर्त्तमानेऽतश्चित्सुखं वर्धय ॥५॥

Word-Meaning: - (परः) उत्कृष्टः (यत्) यः (त्वम्) (परमः) अतीव श्रेष्ठः (आजनिष्ठाः) समन्ताञ्जायसे (परावति) दूरे देशे (श्रुत्यम्) श्रुतौ श्रवणे भवम् (नाम) संज्ञाम् (बिभ्रत्) (अतः) (चित्) अपि (इन्द्रात्) विद्युतः (अभयन्त) (देवाः) विद्वांसः (विश्वाः) सर्वाः (अपः) जलानि (अजयत्) जयति (दासपत्नीः) यो जलं ददाति स दासो मेघः स पतिः पालको यासां ताः ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा दूरस्थोऽपि सूर्य्यः स्वप्रकाशेन प्रख्यातो वर्त्तते तथैव दूरे सन्तोऽप्याप्ताः प्रकाशितकीर्त्तयो भवन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसा दूर असणारा सूर्य स्वप्रकाशाने प्रसिद्ध आहे तसे दूर असणाऱ्या आप्त विद्वानांची कीर्तीही प्रसिद्ध असते. ॥ ५ ॥