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यो न॒ आगो॑ अ॒भ्येनो॒ भरा॒त्यधीद॒घम॒घशं॑से दधात। ज॒ही चि॑कित्वो अ॒भिश॑स्तिमे॒तामग्ने॒ यो नो॑ म॒र्चय॑ति द्व॒येन॑ ॥७॥

English Transliteration

yo na āgo abhy eno bharāty adhīd agham aghaśaṁse dadhāta | jahī cikitvo abhiśastim etām agne yo no marcayati dvayena ||

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Pad Path

यः। नः॒। आगः॑। अ॒भि। एनः॑। भरा॑ति। अधि॑। इत्। अ॒घम्। अ॒घऽशं॑से। द॒धा॒त॒। ज॒हि। चि॒कि॒त्वः॒। अ॒भिऽश॑स्तिम्। ए॒ताम्। अग्ने॑। यः। नः॒। म॒र्चय॑ति। द्व॒येन॑ ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:3» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:17» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर चोरी आदि अपराधनिवारण प्रजापालन राजधर्म को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (चिकित्वः) विज्ञानवान् (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रतापी पृथिवी के पालनेवाले ! (यः) जो (नः) हम लोगों के (आगः) अपराध और (एनः) पाप को (अभि, भराति) सन्मुख धारण करता है उस (अघशंसे) चोरीरूप कर्म में जो (अघम्) पाप (इत) ही को (अधि, दधात) अधिस्थापन करे और (यः) जो (द्वयेन) पाप और अपराध से (नः) हम लोगों को (मर्चयति) बाधता है और (एताम्) इस (अभिशस्तिम्) सब ओर से हिंसा को करता है, उसका आप (जही) त्याग कीजिए ॥७॥
Connotation: - हे राजन् ! जो प्रजा को दोष देनेवाले होवें, उनको सदा ही दण्ड दीजिये और जो श्रेष्ठ आचरण करनेवाले होवें, उनको मानो अर्थात् सत्कार करो ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनश्चौर्य्याद्यपराधनिवारणप्रजापालनराजधर्ममाह ॥

Anvay:

हे चिकित्वोऽग्ने ! यो न आग एनोऽभि भराति तस्मिन्नघशंसे योऽघमिदधि दधात यो द्वयेन नोऽस्मान् मर्चयति। एतामभिशस्तिं विधत्ते तं त्वं जही ॥७॥

Word-Meaning: - (यः) (नः) अस्माकम् (आगः) अपराधम् (अभि) (एनः) पापम् (भराति) धरति (अधि) (इत्) (अघम्) किल्विषम् (अघशंसे) स्तेने (दधात) दध्यात् (जही) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (चिकित्वः) विज्ञानवन् (अभिशस्तिम्) अभितो हिंसाम् (एताम्) (अग्ने) पावक इव महीपते (यः) (न) अस्मान् (मर्चयति) बाधते (द्वयेन) पापापराधाभ्याम् ॥७॥
Connotation: - हे राजन् ! ये प्रजादूषकाः स्युस्तान् सदैव दण्डय, ये श्रेष्ठाचारा भवेयुस्तान् मानय ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! जे प्रजेला दोष देतात त्यांना नेहमी दंड द्यावा व जे श्रेष्ठ आचरण करणारे असतात त्यांचा सन्मान करावा. ॥ ७ ॥