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न त्वद्धोता॒ पूर्वो॑ अग्ने॒ यजी॑या॒न्न काव्यैः॑ प॒रो अ॑स्ति स्वधावः। वि॒शश्च॒ यस्या॒ अति॑थि॒र्भवा॑सि॒ स य॒ज्ञेन॑ वनवद्देव॒ मर्ता॑न् ॥५॥

English Transliteration

na tvad dhotā pūrvo agne yajīyān na kāvyaiḥ paro asti svadhāvaḥ | viśaś ca yasyā atithir bhavāsi sa yajñena vanavad deva martān ||

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Pad Path

न। त्वत्। होता॑। पूर्वः॑। अ॒ग्ने॒। यजी॑यान्। न। काव्यैः॑। प॒रः। अ॒स्ति॒। स्व॒धा॒ऽवः॒। वि॒शः। च॒। यस्याः॑। अति॑थिः। भवा॑सि। सः। य॒ज्ञेन॑। व॒न॒व॒त्। दे॒व॒। मर्ता॑न् ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:3» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजधर्म को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (स्वधावः) बहुत धन और धान्य से युक्त (देव) सुख के देनेवाले (अग्ने) विद्वान् वा राजन् ! आप (यज्ञेन) प्रजापालनरूप व्यवहार से (मर्त्तान्) मनुष्यों का (वनवत्) सेवन करते हो (न) न (त्वत्) आपके समीप से (पूर्वः) प्राचीन (होता) दाता (यजीयान्) अत्यन्त यज्ञ करनेवाला (अस्ति) है और (न) न (काव्यैः) कवियों के बनाये हुओं से (परः) श्रेष्ठ है (यस्याः) जिस (विशः) प्रजा के (च) भी (अतिथिः) आदर करने योग्य जो आप (भवासि) होवें (सः) वह आप उस प्रजा के सत्कार करने योग्य हैं ॥५॥
Connotation: - जो राजा धर्मयुक्त व्यवहार से प्रजाओं का पालन करे, वही राज्य करने के योग्य होता है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजधर्ममाह ॥

Anvay:

हे स्वधावो देवाग्ने ! त्वं यज्ञेन मर्त्तान् वनवन्न त्वत्पूर्वो होता यजीयानस्ति न काव्यैः परोऽस्ति यस्या विशश्चातिथिर्यस्त्वं भवासि स भवांस्तस्याः सत्कर्तुं योग्योऽस्ति ॥५॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (त्वत्) तव सकाशात् (होता) दाता (पूर्वः) (अग्ने) विद्वन् राजन् वा (यजीयान्) अतिशयेन यष्टा (न) निषेधे (काव्यैः) कविभिर्निर्मितैः (परः) श्रेष्ठः (अस्ति) (स्वधावः) बहुधनधान्ययुक्त (विशः) प्रजायाः (च) (यस्याः) (अतिथिः) पूजनीयः (भवासि) भवेः (सः) (यज्ञेन) प्रजापालनव्यवहारेण (वनवत्) सेवयसि (देव) सुखप्रदातः (मर्त्तान्) मनुष्यान् ॥५॥
Connotation: - यो राजा धर्म्येण प्रजाः पालयेत् स एव राज्यं कर्त्तुमर्हति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राजा धर्मयुक्त व्यवहाराने प्रजेचे पालन करतो तोच राज्य करण्यायोग्य असतो. ॥ ५ ॥