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इ॒मे यामा॑सस्त्व॒द्रिग॑भूव॒न्वस॑वे वा॒ तदिदागो॑ अवाचि। नाहा॒यम॒ग्निर॒भिश॑स्तये नो॒ न रीष॑ते वावृधा॒नः परा॑ दात् ॥१२॥

English Transliteration

ime yāmāsas tvadrig abhūvan vasave vā tad id āgo avāci | nāhāyam agnir abhiśastaye no na rīṣate vāvṛdhānaḥ parā dāt ||

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Pad Path

इ॒मे। यामा॑सः। त्व॒द्रिक्। अ॒भू॒व॒न्। वस॑वे। वा॒। तत्। इत्। आगः॑। अ॒वा॒चि॒। न। अह॑। अ॒यम्। अ॒ग्निः। अ॒भिऽश॑स्तये। नः॒। न। रिष॑ते। व॒वृ॒धा॒नः। परा॑। दा॒त् ॥१२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:3» Mantra:12 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:17» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर प्रजाधर्मविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे श्रेष्ठ सन्तान जो (अयम्) यह (अग्निः) अग्नि के सदृश वर्त्तमान (नः) हम लोगों को (अभिशस्तये) सब प्रकार के हिंसा करने के लिये (न) नहीं (अह) निश्चय (परा, दात्) दूर पहुँचावे और (वावृधानः) निरन्तर बढ़ता हुआ (न) नहीं (रीषते) हिंसा करता और (त्वद्रिक्) आपके प्रति यत्न कराता (वसवे) धन के लिए (अवाचि) कहा गया (वा) वा (तत्) वह (आगः) अपराध (इत्) ही कहा गया उसको (इमे) जो (यामासः) यम और नियमों से युक्त जन पढ़ाने और उपदेश से पवित्र करें, वे आनन्दित (अभूवन्) होते हैं ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो विद्वान् जन किसी को भी बिना अपराध के नहीं दोष देते हैं, उनको अपने समीप से दूर मत निकालो ॥१२॥ इस सूक्त में राजा और प्रजा को चोरी और अन्य अपराध आदि के निवारण आदि के कहने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तीसरा सूक्त और सत्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः प्रजाधर्मविषयमाह ॥

Anvay:

हे सत्सन्तान ! योऽयमग्निरिव नोऽभिशस्तये नाऽह परा दाद् वावृधानः सन्न रीषते त्वद्रिक् सन् वसवेऽवाचि वा तदाग इदवाचि तमिमे यामासोऽऽध्यापनोपदेशाभ्यां शोधयन्तु त आनन्दिता अभूवन् ॥१२॥

Word-Meaning: - (इमे) (यामासः) यमनियमान्विताः (त्वद्रिक्) त्वां प्रति यतमानः (अभूवन्) भवन्ति (वसवे) धनाय (वा) (तत्) (इत्) एव (आगः) अपराधः (अवाचि) (न) (अह) (अयम्) (अग्निः) पावक इव (अभिशस्तये) अभितो हिंसनाय (नः) अस्मान् (न) (रीषते) हिनस्ति (वावृधानः) वर्धमानः (परा, दात्) दूरं गमयेत् ॥१२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! ये विद्वांसः कश्चिदपि विनाऽपराधेन नाऽपराध्नुवन्ति तान् स्वसमीपाद्दूरे मा निःसारयेतेति ॥१२॥ अत्र राजप्रजास्तेनापराधनिवारणाद्युक्तत्वादस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति तृतीयं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे विद्वान कुणालाही अपराधाशिवाय दोष देत नाहीत, त्यांना आपल्या जवळून दूर करू नका. ॥ १२ ॥