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त्वम॒ङ्ग ज॑रि॒तारं॑ यविष्ठ॒ विश्वा॑न्यग्ने दुरि॒ताति॑ पर्षि। स्ते॒ना अ॑दृश्रन्रि॒पवो॒ जना॒सोऽज्ञा॑तकेता वृजि॒ना अ॑भूवन् ॥११॥

English Transliteration

tvam aṅga jaritāraṁ yaviṣṭha viśvāny agne duritāti parṣi | stenā adṛśran ripavo janāso jñātaketā vṛjinā abhūvan ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ङ्ग। ज॒रि॒ता॑रम्। य॒वि॒ष्ठ॒। विश्वा॑नि। अ॒ग्ने॒। दुः॒ऽइ॒ता। अति॑। प॒र्षि॒। स्ते॒नाः। अ॒दृ॒श्र॒न्। रि॒पवः॑। जना॑सः। अज्ञा॑तऽकेताः। वृ॒जि॒नाः। अ॒भू॒व॒न् ॥११॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:3» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चोरी आदि दोषनिवारण, सन्तानशिक्षाकरण, प्रजाधर्मविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ) अतिशय करके युवा (अङ्ग) मित्र (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान जिससे (त्वम्) आप (जरितारम्) विद्या और गुण की स्तुति करनेवाले पिता की (अति, पर्षि) अत्यन्त पालना करते हो (विश्वानि) सम्पूर्ण (दुरिता) दुःख के प्राप्त करानेवाले कर्म्म वा फलों का त्याग करते हो और जो (अज्ञातकेताः) नहीं जानी बुद्धि जिन्होंने वे मूर्ख (वृजिनाः) पापाचरणयुक्त वर्जने योग्य (स्तेनाः) चोर (रिपवः) शत्रु (अभूवन्) होते हैं और जिनको (जनासः) विद्वान् जन (अदृश्रन्) देखते हैं, उनका आप परित्याग करो ॥११॥
Connotation: - हे उत्तम सन्तानो ! आप लोग दुष्ट आचरणों का त्याग, माता-पितादि का सत्कार और चौरी कर्म्म आदि का निवारण करके पुण्य यशवाले हूजिये ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ चौर्यादिदोषनिवारणसन्तानशिक्षाकरणप्रजाधर्मविषयमाह ॥

Anvay:

हे यविष्ठाङ्गाग्ने ! यतस्त्वं जरितारमति पर्षि विश्वानि दुरिता त्यजसि येऽज्ञातकेता वृजिनाः स्तेना रिपवोऽभूवन् याञ्जनासोऽदृश्रँस्तांस्त्वं परित्यज ॥११॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अङ्ग) मित्र (जरितारम्) विद्यागुणस्तावकं पितरम् (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (विश्वानि) अखिलानि (अग्ने) (दुरिता) दुःखप्रापकाणि कर्माणि फलानि वा (अति) (पर्षि) अत्यन्तं पालयसि (स्तेनाः) चोराः (अदृश्रन्) पश्यन्ति (रिपवः) शत्रवः (जनासः) विद्वांसः (अज्ञातकेताः) अज्ञातः केतः प्रज्ञा यैस्ते मूढाः (वृजिनाः) पापाचारा वर्जनीयाः (अभूवन्) भवन्ति ॥११॥
Connotation: - हे सुसन्ताना ! यूयं दुष्टाचारं त्यक्त्वा पितॄन् सत्कृत्य स्तेनादीन्निवार्य पुण्यकीर्त्तयो भवत ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे उत्तम संतानांनो! तुम्ही दुष्टाचरण सोडून माता-पित्याचा सत्कार किंवा चोरी इत्यादी कर्माचे निवारण करून पुण्यरूपी कीर्ती मिळवा. ॥ ११ ॥