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यस्य॑ मा परु॒षाः श॒तमु॑द्ध॒र्षय॑न्त्यु॒क्षणः॑। अश्व॑मेधस्य॒ दानाः॒ सोमा॑इव॒ त्र्या॑शिरः ॥५॥

English Transliteration

yasya mā paruṣāḥ śatam uddharṣayanty ukṣaṇaḥ | aśvamedhasya dānāḥ somā iva tryāśiraḥ ||

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Pad Path

यस्य॑। मा॒। प॒रु॒षाः। श॒तम्। उ॒त्ऽह॒र्षय॑न्ति। उ॒क्षणः॑। अश्व॑ऽमेधस्य। दानाः॑। सोमाः॑ऽइव। त्रिऽआ॑शिरः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:27» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यस्य) जिस (अश्वमेधस्य) चक्रवर्त्तिराज्यपालन की विद्या की (शतम्) असङ्ख्य (परुषाः) कठोर (उक्षणः) मधुर उपदेशों से सींचती और (सोमाइव) सोमलतादिकों के सदृश (दानाः) देती हुई (त्र्याशिरः) जीव, अग्नि और पवनों से भोगी गईं (मा) मुझ को (उद्धर्षयन्ति) उत्साहित करती हैं, वे वाणियाँ मुझ से सहने योग्य हैं ॥५॥
Connotation: - जो विद्या की इच्छा करें, वे सबकी मर्म्म भेदनेवाली वाणियों को सहें और चन्द्रमा के सदृश शान्त होके विद्या और विनय को ग्रहण करें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

यस्याश्वमेधस्य शतं परुषा उक्षणः सोमाइव दानास्त्र्याशिरो मा मामुद्धर्षयन्ति ता वाचो मया सोढव्याः ॥५॥

Word-Meaning: - (यस्य) (मा) माम् (परुषाः) कठोराः (शतम्) असङ्ख्याः (उद्धर्षयन्ति) उत्साहयन्ति (उक्षणः) मधुरैरुपदेशैः सेचमानाः (अश्वमेधस्य) चक्रवर्तिराज्यपालनस्य विद्यायाः (दानाः) ददानाः (सोमाइव) सोमलतादय इव (त्र्याशिरः) यास्त्रिभिर्जीवाग्निवायुभिरश्यन्ते भुज्यन्ते ताः ॥५॥
Connotation: - ये विद्यामिच्छेयुस्ते सर्वेषां मर्मच्छिदो वाचः सहन्ताम्। चन्द्रवच्छान्ता भूत्वा विद्याविनयौ गृह्णन्तु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो विद्येची इच्छा करतो त्याने सर्वांची मर्मभेदक वाणी सहन करावी व चंद्राप्रमाणे शांत बनून विद्या व विनयाचा स्वीकार करावा. ॥ ५ ॥