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स॒मि॒धा॒नः स॑हस्रजि॒दग्ने॒ धर्मा॑णि पुष्यसि। दे॒वानां॑ दू॒त उ॒क्थ्यः॑ ॥६॥

English Transliteration

samidhānaḥ sahasrajid agne dharmāṇi puṣyasi | devānāṁ dūta ukthyaḥ ||

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Pad Path

स॒म्ऽइ॒धा॒नः। स॒ह॒स्र॒ऽजि॒त्। अग्ने॑। धर्मा॑णि। पु॒ष्य॒सि॒। दे॒वाना॑म्। दू॒तः। उ॒क्थ्यः॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:26» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्निसादृश्य से विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश दुष्टों के जलानेवाले ! जैसे (समिधानः) निरन्तर प्रकाशित हुआ अग्नि (देवानाम्) विद्वानों के (दूतः) समाचार को दूर व्यवहरता वा दूर पहुँचाता और ले आता है, वैसे (सहस्रजित्) असङ्ख्यों के जीतनेवाले (उक्थ्यः) प्रशंसा करने योग्य विद्वानों का निरन्तर प्रकाश करने, समाचार को दूर व्यवहरने वा दूर पहुँचाने और लानेवाले होते हुए जिससे (धर्म्माणि) धर्म्मसम्बन्धी कर्म्मों को (पुष्यसि) पुष्ट करते हो, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य विद्या से अग्नि के गुणों को जान के कार्य्य की सिद्धि के लिये जिस अग्नि का सम्प्रयोग करते हैं, वह अग्नि मनुष्य के तुल्य कार्य्य की सिद्धि को करता है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निसादृश्येन विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यथा समिधानः पावको देवानां दूतोऽस्ति तथा सहस्रजिदुक्थ्यो देवानां समिधानो दूतः सन् यतो धर्म्माणि पुष्यसि तस्मात् सत्कर्तव्योऽसि ॥६॥

Word-Meaning: - (समिधानः) देदीप्यमानः (सहस्रजित्) असङ्ख्यानां विजेता (अग्ने) अग्निरिव दुष्टदाहक (धर्म्माणि) धर्म्याणि कर्माणि (पुष्यसि) (देवानाम्) (दूतः) यो दुनोति समाचारं दूरं दूराद्वा गमयत्यागमयति (उक्थ्यः) प्रशंसनीयः ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या विद्यया विज्ञाय कार्यसिद्धये यमग्निं सम्प्रयुञ्जते सोऽग्निर्मनुष्यवत् कार्यसिद्धिं करोति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे विद्येद्वारे अग्नीचे गुण जाणून कार्यसिद्धीसाठी ज्या अग्नीचा उपयोग करतात तो अग्नी माणसांप्रमाणे कार्यसिद्धी करतो. ॥ ६ ॥