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व॒सां राजा॑नं वस॒तिं जना॑ना॒मरा॑तयो॒ नि द॑धु॒र्मर्त्ये॑षु। ब्रह्मा॒ण्यत्रे॒रव॒ तं सृ॑जन्तु निन्दि॒तारो॒ निन्द्या॑सो भवन्तु ॥६॥

English Transliteration

vasāṁ rājānaṁ vasatiṁ janānām arātayo ni dadhur martyeṣu | brahmāṇy atrer ava taṁ sṛjantu ninditāro nindyāso bhavantu ||

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Pad Path

व॒साम्। राजा॑नम्। व॒स॒तिम्। जना॑नाम्। अरा॑तयः। नि। द॒धुः॒। मर्त्ये॑षु। ब्रह्मा॑णि। अत्रेः॑। अव॑। तम्। सृ॒जन्तु॒। नि॒न्दि॒तारः॑। निन्द्या॑सः। भ॒व॒न्तु॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:2» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (वसाम्) वसते हुए प्राणियों और (जनानाम्) सज्जन पुरुषों के (राजानम्) न्याय करनेवाले को और (वसतिम्) निवास को प्रकट करे, (तम्) उसको विद्वान् जन (अव, सृजन्तु) न निकाल दें और जो (निन्दितारः) गुणों में दोषों और दोषों में गुणों का स्थापन करनेवाले (निन्द्यासः) अधर्म के आचरण से निन्दा करने योग्य और (अरातयः) अन्याय से ग्रहण करनेवाले शत्रुजन (मर्त्येषु) मरणधर्म्मा मनुष्यों में (ब्रह्माणि) बड़े धनों को (नि, दधुः) स्थापन करें वे (अत्रेः) तीन प्रकार के दुःख से रहित के भी दूर स्थित (भवन्तु) हों ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो निकृष्ट कर्म्म करने और दूसरे के द्रव्य के हरनेवाले द्वेषकर्त्ता हों, उनको दण्ड देकर निर्जन देश में बाँधो और जो स्तुति करनेवाले धर्म्मिष्ठ होवें, उनको समीप में निवास देकर सदा सत्कार करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

यो वसां जनानां राजानं वसतिं जनयतु तं विद्वांसोऽव सृजन्तु ये निन्दितारो निन्द्यासोऽरातयो मर्त्येषु ब्रह्माणि नि दधुस्तेऽत्रेरपि दूरस्था भवन्तु ॥६॥

Word-Meaning: - (वसाम्) वसतां प्राणिनाम् (राजानम्) न्यायकारिणम् (वसतिम्) निवासम् (जनानाम्) सज्जनानाम् (अरातयः) अन्यायेनादातारः शत्रवः (नि) (दधुः) दधीरन् (मर्त्येषु) (ब्रह्माणि) महान्ति धनानि (अत्रेः) अविद्यमानत्रिविधदुःखस्य (अव) निषेधे (तम्) (सृजन्तु) निःसारयन्तु (निन्दितारः) गुणेषु दोषान् दोषेषु गुणान् स्थापयन्तः (निन्द्यासः) अधर्माचरणेन निन्दितुं योग्याः (भवन्तु) ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये कुत्सितकर्माचाराः परद्रव्यापहर्त्तारो द्वेष्टारः स्युस्तान् दण्डयित्वा निर्जने देशे बध्नन्तु। ये च स्तावका धर्मिष्ठाः स्युस्तान् समीपे निवास्य सदा सत्कुर्वन्तु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जे निकृष्ट कर्म करणारे, परद्रव्य हरण करणारे, द्वेष करणारे असतील तर त्यांना दंड देऊन निर्जन स्थानी ठेवा व जे स्तुती करणारे धार्मिक असतील, तर त्यांना जवळ ठेवून सदैव सत्कार करा. ॥ ६ ॥