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ये मे॑ पञ्चा॒शतं॑ द॒दुरश्वा॑नां स॒धस्तु॑ति। द्यु॒मद॑ग्ने॒ महि॒ श्रवो॑ बृ॒हत्कृ॑धि म॒घोनां॑ नृ॒वद॑मृत नृ॒णाम् ॥५॥

English Transliteration

ye me pañcāśataṁ dadur aśvānāṁ sadhastuti | dyumad agne mahi śravo bṛhat kṛdhi maghonāṁ nṛvad amṛta nṛṇām ||

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Pad Path

ये। मे॒। प॒ञ्चा॒शत॑म्। द॒दुः। अश्वा॑नाम्। स॒धऽस्तु॑ति। द्यु॒ऽमत्। अ॒ग्ने॒। महि॑। श्रवः॑। बृ॒हत्। कृ॒धि॒। म॒घोना॑म्। नृ॒ऽवत्। अ॒मृ॒त॒। नृ॒णाम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:18» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (ये) जो अतिथि जन (मे) मेरे लिये (अश्वानाम्) वेग से युक्त अग्नि आदि पदार्थों के (सधस्तुति) साथ प्रशंसित (द्युमत्) यथार्थ ज्ञान के प्रकाश से युक्त (पञ्चाशतम्) पञ्चाशत् संख्यायुक्त विज्ञान को (ददुः) देनेवाले हों, उनके साथ हे (अग्ने) विद्वन् ! आप एक साथ प्रशंसित और यथार्थ ज्ञान के प्रकाश से युक्त (महि) बड़े (बृहत्) बहुत (श्रवः) अन्न वा श्रवण को (कृधि) करिये और हे (अमृत) मरणधर्म्म से रहित ! उन (मघोनाम्) बहुत धनवान् (नृणाम्) मनुष्यों के (नृवत्) मनुष्यों के तुल्य उन्नति का विधान करो ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो अतिथिजन पदार्थविद्या को देवें, उनका सत्कार यथायोग्य करो ॥५॥ इस सूक्त में अग्निवत् अतिथि के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अठारहवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

येऽतिथयो मेऽश्वानां सधस्तुति द्युमत्पञ्चाशतं विज्ञानं ददुस्तैः सहाग्ने विद्वँस्त्वं सधस्तुति द्युमन्महि बृहच्छ्रवः कृधि। हे अमृत ! तेषां मघोनां नृणां नृवदुन्नतिं विधेहीति ॥५॥

Word-Meaning: - (ये) (मे) मह्यम् (पञ्चाशतम्) (ददुः) दत्तवन्तः स्युः (अश्वानाम्) वेगवतामग्न्यादिपदार्थानाम् (सधस्तुति) सहप्रशंसितम् (द्युमत्) यथार्थज्ञानप्रकाशयुक्तम् (अग्ने) विद्वन् (महि) महत् (श्रवः) अन्नं श्रवणं वा (बृहत्) (कृधि) (मघोनाम्) बहुधनवताम् (नृवत्) नृभिस्तुल्यम् (अमृत) मरणधर्मरहित (नृणाम्) मनुष्याणाम् ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येऽतिथयः पदार्थविद्यां प्रयच्छेयुस्तेषां सत्कारं यथावत्कुरुतेति ॥५॥ अत्राग्निवदतिथिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टादशं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे अतिथी पदार्थविद्या शिकवितात त्यांचा यथायोग्य सत्कार करा. ॥ ५ ॥